चातुर्मास में क्या नहीं करना, यह सोचे, क्या करना वह तो सब सोचते है- आचार्य देव श्री नयचंद्र सागर सुरीश्वरजी म.सा.

आराधना के माध्मय से आत्मा तक पहुंचना है- गणिवर्य डॉ. अजीतचंद्र सागर जी म.सा.

रतलाम, 20 जुलाई। श्री देवसुर तपागच्छ चारथुई जैन श्री संघ गुजराती उपाश्रय रतलाम एवं श्री ऋषभदेव जी केसरीमल जी जैन श्वेतांबर पेढ़ी रतलाम के तत्वावधान में चातुर्मास के पावन अवसर पर सैलाना वालों की हवेली मोहन टॉकीज में वर्धमान तपोनिधि पूज्य आचार्य देव श्री नयचंद्रसागर सुरीश्वर जी म.सा. एवं गणिवर्य डॉ. अजीतचंद्र सागर जी म.सा. के मंगल प्रवचन शनिवार से शुरू हो गए।
आचार्य देव श्री नयचंद्रसागर सुरीश्वर जी म.सा. ने उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं को चातुर्मास के महत्व के बारे में बताया। उन्होने कहा कि चातुर्मास में हमें क्या करना है यह सब सोचते है लेकिन क्या नहीं करना है, वह भी हमें सोचना है। यह चार माह प्रभु की आराधना के है। इस पूरे समय में हमें धर्म, आराधना से जुड़कर प्रभु तक पहुंचने के मार्ग पर जाना है। आचार्य श्री ने निवृत्ति धर्म और प्रवृत्ति धर्म पर प्रकाश डालते हुए कहा कि चातुर्मास में हमें किन कार्यों से निवृत्त होना है, उसका विशेष ध्यान रखना है। यदि गुरू भगवंत सुबह जल्दी किसी के घर पहुंचते है तो उसका संबंधित परिवार को कई प्रकार से सीधा लाभ मिलता है। गुरू के दर्शन होते है, पॉजिटिव ऊर्जा मिलती है।
गणिवर्य डॉ. अजीतचंद्र सागर जी म.सा. ने कहा कि एक शुभ संकल्प और शुभ मुहूर्त में आचार्य भगवंत का चातुर्मास मंगल प्रवेश आपने कराया है। आज चातुर्मास की चौदस संकल्प का दिन है। चातुर्मास में प्रभु की आराधना के माध्यम से हमें आत्मा के नजदीक पहुंचना है। रविवार से प्रतिदिन आचार्य श्री के प्रवचन प्रातः 9.15 बजे से 10.15 बजे तक होंगे। श्री संघ ने धर्म प्रेमी नागरिकों से अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होने का आह्वान किया है।