गुरु -शिष्य परंपरा भारतीय संस्कृति का आधार रही है – राजेंद्र श्रोत्रीय

जावरा (अभय सुराणा)। शिक्षा और मार्गदर्शन की प्रति अपने समग्र दृष्टिकोण के कारण गुरु -शिष्य परंपरा भारतीय संस्कृति का आधार रही है। प्राचीन काल से ही शिष्यों को गुरुकुल में शारीरिक,मानसिक, बौद्धिक विकास की शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक सरोकार के संस्कार भी मिलते थे। उक्त विचार श्री माधवानन्द एकेडमी पर गुरु पूर्णिमा महोत्सव के अंतर्गत राजेंद्र श्रोत्रीय ने व्यक्त किये। परंतु वर्तमान में कॉन्वेंट शिक्षा प्रणाली में बच्चों का लक्ष्य डिग्री प्राप्त करना और कैरियर प्राप्त करना ही रह गया है।बच्चे केवल किताब भी कीड़े बनकर रह गए। जबकि गुरुकुल परंपरा में छात्र ज्ञान के साथ-साथ आत्म बल और संस्कार भी प्राप्त कर सकते थे जो हमारी संस्कृति में श्रेष्ठ थे। कार्यक्रम के शुभारंभ में समिति के कोषाध्यक्ष जगदीश धनोतिया, प्राचार्य मनीष शर्मा व छात्र -छात्राओं ने श्री श्री 1008 स्वामी श्री गुरु मुखानंद जी महाराज एवं मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कर व दीप प्रज्जलन कर किया। इस अवसर पर छात्र-छात्रों ने विद्यालय के शिक्षक शिक्षिकाओं का सम्मान किया। बच्चों ने गुरु महत्व पर विचार व्यक्त किया और गीत प्रस्तुत किये।कार्यक्रम का संचालन बाबूलाल पांचाल ने किया।