गुरु पूर्णिमा उत्सव संपन्न हुआ

रतलाम। शासकीय प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालय बोदिना में गुरु पूर्णिमा उत्सव कार्यक्रम संपन्न हुआ । इस कार्यक्रम निमित्त संस्था के प्रमुख श्रीमती तरूणबाला, वरिष्ठ शिक्षिका श्रीमती मंजू बाला शुक्ला एवं श्रीमती अनामिका वायगांवकर, सुश्री संतोष पाटीदार ने ज्ञान की देवी मां सरस्वती के चित्र के समक्ष पूजन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया । अतिथियों का सम्मान छात्र परिषद के अधिकारियों द्वारा किया गया । कक्षा 4,5,6,7,8 के भैया व बहिनो द्वारा गुरु पूर्णिमा उत्सव पर अपने-अपने विचार रखें , गीत ,भजन प्रस्तुत किए गए ।
गुरु पूर्णिमा का महत्व बताते हुए तरुण बाला दीदी ने माता को प्रथम गुरु बताया और अनुशासन में जीवन जीना चाहिए जिससे व्यक्ति का निर्माण हो सके । श्रीमती अनामिका द्वारा गुरु शिष्य की परंपरा की विशेषता और उसके महत्व के ऊपर प्रकाश डाला ।
श्रीमती मंजू बाला शुक्ला द्वारा ,गुरु शिष्य कुंभ है ,गड गड कर कांटे खोट ,अंदर हाथ सहार दे बाहर मारे चोट , श्री कैलाश नारायण भाटी ने गुरु शब्द का महत्व और गुरु शब्द का अर्थ बताते हुए कहा है कि गु का अर्थ होता है अंधकार ,रू का अर्थ होता है दूर करने वाला ,अर्थात मनुष्य के जीवन में अज्ञानता रुपी अंधकार को दूर करने वाला ही गुरु होता है ।जो मनुष्य को सद मार्ग पर ले चलता है सत्कर्म करने की प्रेरणा ,शिक्षा देता है ।
हमारे देश की विशेषता है गुरु शिष्य की परंपरा आषाढ़ मास की पूर्णिमा को प्रतिवर्ष हम गुरु पूर्णिमा उत्सव मनाते हैं ।इस दिन हम सभी अपने गुरु ,शिक्षक के चरणों में कृतज्ञता व्यक्त करते हैं ।गुरु हमारे जीवन के विकारों का अज्ञान दूर कर आनंद में जीवन यापन कैसे करें ,यह सब हमें सिखाते हैं ।
भारतीय संस्कृति में व्यक्ति मात्र को ही नहीं अपितु तत्व को भी गुरु माना जाता है ।गुरु के प्रति कृतज्ञता एवं समर्पण की प्रतीक गुरु दक्षिणा हमारे प्राचीन पद्धति है । प्राचीन काल में भगवान श्री राम के गुरु वशिष्ठ, भगवान श्री कृष्ण के गुरु सांदीपनि ,स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस, शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास ,एकलव्य के गुरु द्रोणाचार्य ,चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु चाणक्य आदि अनेकों महापुरुषों के जीवन के बारे में प्रकाश डाला गया व गुरु के महत्व को बताया गया ।
सब धरती कागज करूं, लेखनी सब वनराय , सात समुद्र के मसी करु गुरु गुण लिखा न जाए । कार्यक्रम का सफल संचालन शिक्षक कैलाश नारायण भाटी ने किया व आभार श्रीमती वायगांवकर ने माना ।