यह तन विष की वेलड़ी, गुरु अमृत की खान, शीश दिए गर गुरु मिले तो भी सस्ता जान – पूज्याश्री कल्पदर्शनाजी म.सा.

रतलाम 21 जुलाई । गुरु पूर्णिमा के पर्व पर जिनशासन चंद्रिका, मालव गौरव पूज्याश्री प्रियदर्शनाजी म.सा. (बेरछावाले) एवं तत्वचिन्तिका पूज्याश्री कल्पदर्शनाजी म.सा. ने अपने प्रवचन में कहा कि जिसके जीवन में गुरु नही उसका जीवन शुरू नही। यह तन विष की वेलड़ी, गुरु अमृत की खान, शीश दिए गर गुरु मिले तो भी सस्ता जान। माता पिता जन्म देते है, लेकिन गुरु जीवन देता है।
अच्छे शिष्य की निशानी है कम खाना, गम खाना और नम जाना । अकड़ तो मुर्दों की पहचान है, जो अकड़ता है वो अंनत टूट जाता है। विनम्रता, विवेक और गुरु आज्ञा का पालन की सबसे बड़ी गुरु दक्षिणा है। सच्चा गुरु तिन्नाणं तारयांण होता है। जो स्वंय भी तीर जाता है और अपने शिष्य को भी तिरा देता है।
गुरु लोभी चेला लालची
दोनों डूबे बापड़ा, बैठ पत्थर की नाव।
अगर गुरू लालची है जिसे हमेशा दक्षिणा का लालच हो और चेला/भगत भी इस लालच से गुरु से जुड़े की गुरू कोई तंत्र मंत्र दे देंगे जिससे मेरा भला हो जाएगा। ऐसी स्थिति में दोनों का डूबना तय है। जीवन में सद्गुरु की प्राप्ति बहुत बड़ी सफलता है।
शास्त्रों में भी बताया गया है कि माता पिता और गुरू का उपकार कभी नही चुकाया जा सकता है। पूरे शरीर की चमड़ी उतारकर उसके जूते बनाकर भी उन्हें पहना दो तो भी उनका उपकार चुकने वाला नही है। सदगुरु की आज्ञा का पालन नही करना और उनकी अवहेलना करना महान कर्मबंध का कारण है।
गुरू शब्द में दो स्वर और दो व्यंजन है। ग और र व्यंजन है, एवं उ ऊ स्वर है। जँहा
ग : गम्भीर, गुरु गम्भीर होना चाहिये, कोई अपने दिल की बात गुरु को बताए तो सच्चा गुरु गम्भीरता से सुनता है, उसकी उचित सलाह देता है और बात इधर की उधर नही करता है।
उ : उदार, सद्गुरु हमेशा उदार होता है, बड़ा दिल रखता है, अपशब्द, अवहेलना से विचलित नही होता है।
र : रहस्यों का
ऊ : ऊद्घाटक
इस प्रकार सद्गुरु गम्भीर, उदार और रहस्यों का ऊद्घाटक होता है, रहस्यों को बताने वाला समझाने वाला होता है। परम पूज्य गुरुदेव कविरत्न श्री त्रिलोक ऋषि जी मसा ने बहुत सुंदर लाइने लिखी है कि गुरु मित्र, गुरु मात, गुरु सगा, गुरु तात, गुरु भूप, गुरु भ्रात।