रतलाम 24 जुलाई। चातुर्मास के पावन अवसर पर खेरादीवास स्थित नीम वाले उपाश्रय में चल रही प्रवचन श्रृंखला में परम पूज्य साध्वी श्री समकीत गुणा श्री म.सा.ने अपने प्रवचन में उदाहरण देते हुए समझाया कि परोपकार करने में आनंद आना चाहिए ।नदी भी परोपकार करती है । कई लोगों की प्यास बुझती है। पेड़ पौधों को जीवित रखती है बिना पानी के हम 1 मिनट भी नहीं रह सकते। पृथ्वी परोपकार करती है पृथ्वी कितना कुछ सहन करती है वह भी भेदभाव नहीं करती ऐसे ही हमारे जैन में महान संत हुए जो गोचरी के लिए गए और गोचरी लेकर लौटे गुरु भगवंत के पास गए तो गुरु भगवंत ने कहा कि यह गोचरी तेरे वापरने योग्य नहीं है इसे किसी निर्जन स्थान पर गड्डा खोदकर ऊपर से मिट्टी डाल देना क्योंकि गोचरी में जो भोजन दिया था वह कड़वे तुंबे की सब्जी बनाई थी इसलिए परिवार वालों को नहीं खिलाई क्योंकि परिवार के लोग बीमार पड़ जाएंगे और उस घर पर मुनि भगवंत ने प्रवेश किया उनका मास क्षमण के तपस्वी थे। उन लोगों ने मनी भगवंत को कड़वी तुम्बे भी की सब्जी दे दी गुरु की आज्ञा से वह जंगल में गए और सब्जी की एक बूंद ही जमीन पर डाली थी हजारों चीटियां इकट्ठी हो गई तो मुनि भगवंत ने सोचा मेरे एक बूंद डालने से इतनी चीटियां मर रही है तो मैं 15 लोगों के खाने की सब्जी अगरत डालता हूं तो कितने जीवन की हत्या होगी यह सोचकर उन्होंने उसे खा लिया और उन मुनि भगवंत का नाम धर्मरूचि अडगार था और वह देवलोक प्राप्त हो गए। इसलिए हमें जीवो की हत्या से बचना चाहिए परोपकार करना चाहिए जीवन में दया रखनी चाहिए।
परम पूज्य साध्वी श्री अनंत गुणा श्री जी म.सा. ने अपने मंगल प्रवचन में कहा कि जिनवाणी में महावीर स्वामी जी के ज्ञान को आगे बढ़ाते हुए बताया कि अपेक्षा और उपेक्षा में अ और उ का बहुत बड़ा अंतर है। जीवन में किसी से भी अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए। अपेक्षा रखने से व्यक्ति मोह में पड़ जाता है और उसे मुक्ति नहीं मिलती। उपेक्षा से कर्म बंधन का दोष व्याप्त नहीं होता जहां अपेक्षा खत्म हो गई वहां से उपेक्षा में व्यक्ति चला जाता है और और उसमें अनासक्त भाव आ जाते हैं जिससे वह कर्म बंधन से मुक्त हो जाता है। आगे समझते हुए साध्वी श्री म.सा. बताया कि मनुष्य जीवन में अपने साथ चार चीज ले जाता है पाप, पुण्य,बुराई और भलाई। अभी चतुर्मास चल रहे हैं परंतु आप सभी लोगों को जिनवाणी रोज सुनना चाहिए उसी से ज्ञान आएगा। जो कुछ आपको मिल रहा है यह सब पूर्व पुण्य का फल है जो अपने पूर्व में धर्म, आराधना, गुरु की भक्ति की उसके परिणाम स्वरूप आपको सब कुछ प्राप्त हो रहा है परंतु आपको यह सोचना है की अभी हम ऐसे कौन से पुण्य कार्य करें जिससे आगे हमें सद्गति प्राप्त हो और अगर मैंने जिनवाणी सुनी और उसे फॉलो नहीं कर पाया तो कोई लाभ होने वाला नहीं है।
जहां वैरागी बनोगे तो आगे वितरागी बनोगे। ज्ञानीजन कहते हैं संसार में रहकर भी अनासक्त भाव से रह सकते हैं।यह संसार नाटक मंच है इसका आप ध्यान रखोगे तो आपके अनासक्त भाव आएगा और किसी भी प्रकार से आप मोह माया में लिप्त नहीं हो पाओगे और कर्म भाव से मुक्त हो जाओगे।
सिद्धि तप के लिए म. सा. ने बताया कि 26 जुलाई को सिद्धि तप का कलश पूजन होगा। यह सिद्धि तप पूर्ण विधि विधान के साथ होगा जिसमें सिद्धि होगी तथा जीवन की सभी बाधाएं समाप्त हो सकेगी । आप सभी लोगों को ज्यादा से ज्यादा सिद्धि तप में भाग लेना है।
कल प्रवचन में आत्मा की परमात्मा तक की यात्रा कैसे होती है परमात्मा क्यों दिखाई नहीं देते है आत्मा क्या अनुभव करती है यह सब कल प्रवचन में बताया जाएगा। सौ. वृ.त. त्रीस्तुतिक जैन श्री संघ एवं राज अनंत चातुर्मास समिति, रतलाम के तत्वाधान में आयोजित प्रवचन श्रृंखला में बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाएं उपस्थित रही।