कितना ही पापी व्यक्ति क्यों ना हो परमात्मा की भक्ति कर लेता है तो मोक्ष प्राप्त हो जाता है – प. पू. साध्वी श्री अनंत गुणा श्री जी म.सा.

आज से अठ्ठम तप प्रारंभ

रतलाम । सौ.वृ.त. श्री राजेंद्र सूरि त्रिस्तुतिक जैन श्वेतांबर श्री संघ एवं चातुर्मास समिति द्वारा नीम वाला उपाश्रय खेरादीवास में रतलाम नंदन प. पू .श्री 1008 जैन मंदिर के प्रेरणादाता, राष्ट्र संत कोकण केसरी गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद् विजय लेखेन्द्र सुरिश्वर जी म.सा. की आज्ञानुवर्ती एवं मालवमणि पूज्य साध्वी जी श्री स्वयं प्रभा श्री जी म.सा. की सुशिष्य रतलाम कुल दीपिका शासन ज्योति साध्वी जी श्री अनंत गुणा श्रीजी म.सा सहित श्री अक्षयगुणा श्रीजी म.सा, श्री समकित गुणा श्री जी म.सा., श्री भावित गुणा श्री जी म.सा. उपाश्रय में विराजे हैं। जिनका चातुर्मास मे विशेष सिद्धि तप, अठ्ठम तप की धर्म आराधना कराई जा रही है। चातुर्मास में नित्य व्याख्यान दिए जा रहे हैं । इसके अंतर्गत आज दिनांक 29 जुलाई 2024,सोमवार को परम पूज्य साध्वी श्री अनंत गुणा श्री जी म.सा. ने अपने मंगल प्रवचन में कहा कि आज से शंखेश्वर पार्श्वनाथ के अष्टम तप प्रारंभ होने जा रहे हैं। प्राचीन काल से अठ्ठम तप किया जा रहा हैं। शंखेश्वर पार्श्वनाथ के अलावा अन्य किसी के भी अठ्ठम तप नहीं होते है।मंत्र के माध्यम से परमात्मा की आराधना व साधना विशेष रूप से की जाती है।
ज्ञानीजन कहते हैं प्रभु के मन में राग और द्वेष नहीं है इसलिए प्रभु में समभाव है वही समभाव आपको लेना है तभी आप साधना में सिद्धि प्राप्त कर सकते हो।
आराधना, साधना के अलावा तीसरा रास्ता भक्ति का है। आराधना और साधना नहीं कर सको तब भी भक्ति के माध्यम से मोक्ष प्राप्त हो सकता है। कितना ही पापी व्यक्ति क्यों ना हो परमात्मा की भक्ति कर लेता है तो मोक्ष प्राप्त हो जाता है।साधना के लिए ज्ञान,क्रिया और तपस्या जरूरी है।ज्ञान तो अपने प्राप्त कर लिया परंतु क्रिया और तपस्या नहीं की तो कुछ होने वाला नहीं है। बिना ज्ञान के क्रिया और तपस्या अधूरी है यह तीन मिलेंगे तब मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी ज्ञान श्रृंखला में रावण,धरणेन्द्र और पद्मावती का वृतांत सुनाया गया। कल भगवान की प्रतिमा पाताल से कैसे आई इन विषयों को समझाया जाएगा। प्रवचन के बाद अठ्ठम तप की आराधना प्रारंभ की गई।
सौ. वृ.त. त्रीस्तुतिक जैन श्री संघ एवं राज अनंत चातुर्मास समिति, रतलाम के तत्वाधान में आयोजित व्याख्यान श्रृंखला में बड़ी संख्या में श्रावक व स्राविकाएं उपस्थित रही।