श्रद्धा, विश्वास के साथ एकाग्रचित होकर जाप किया जाए तो साधना सिद्ध होती है – परम पूज्य साध्वी श्री अनंत गुणा श्री जी म. सा.

रतलाम। सौ.वृ.त. श्री राजेंद्र सूरि त्रिस्तुतिक जैन श्वेतांबर श्री संघ एवं चातुर्मास समिति द्वारा नीम वाला उपाश्रय खेरादीवास में रतलाम नंदन प. पू .श्री 1008 जैन मंदिर के प्रेरणादाता, राष्ट्र संत कोकण केसरी गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद् विजय लेखेन्द्र सुरिश्वर जी म.सा. की आज्ञानुवर्ती एवं मालवमणि पूज्य साध्वी जी श्री स्वयं प्रभाश्री जी म.सा. की सुशिष्य रतलाम कुल दीपिका शासन ज्योति साध्वी जी श्री अनंत गुणा श्रीजी म.सा सहित श्री अक्षयगुणा श्रीजी म.सा, श्री समकित गुणा श्री जी म.सा. श्री भावित गुणा श्री जी म.सा. उपाश्रय में विराजे हैं। जिनका चातुर्मास मे विशेष सिद्धि तप, अठ्ठम तप की धर्म आराधना कराई जा रही है। चातुर्मास में नित्य व्याख्यान दिए जा रहे हैं।इसके अंतर्गत आज दिनांक 30जुलाई 2024,मंगलवार को परम पूज्य साध्वी श्री अनंत गुणा श्री जी म.सा. ने प्रवचन के बाद दूसरे दिन की अठ्ठम तप की आराधना श्रावक-श्राविकाऔं को करवाई गई।
परम पूज्य साध्वी श्री अनंत गुणा श्री जी म. सा. ने मंगल प्रवचन में बताया कि आप लोग एक साथ कई तीर्थ करते हो इसके लिए हर बार एक तीर्थ करो अच्छे से करो। एक तीर्थ पर जो अच्छे से साधना, आराधना करो और उसका इतिहास मालूम करो क्योंकि कोई पूछ लेगा तब आपको इतिहास मालूम नहीं होगा तो क्या कहोगे।
शंखेश्वर पार्श्वनाथ के लिए बताया कि किसी की आंखों की रोशनी चली जाए या काम हो जाए तो प्रश्नाल की जल को आंखों पर लगाने से रोशनी वापस आ जाती है। ऐसे कई उदाहरण है। राजा श्री कृष्ण ने युद्ध में विजय के पश्चात प्रसन्न होकर यहां शंख बजाया था इसीलिए इसका नाम शंखपुर हुआ और आगे जाकर शंखेश्वर तीर्थ हुआ।राजा श्री कृष्ण ने कमरा बनवाया था और मूर्ति की स्थापना की थी।तब से शंखेश्वर पार्श्वनाथ कहलाए। दुर्जन शल्य नाम का राजा था जिसे कोढ हो गई थी उसने उसने पार्श्वनाथ प्रभु का प्रक्षाल कर 21 दिन तक प्रक्षाल लगाया उससे उसका शरीर रोग मुक्त हो गया और उसने आगे जाकर पहली बार जिर्णोद्वार मंदिर का करवाया। अगर सही तरीके से प्राण प्रतिष्ठा की जाए तो प्रतिमा में प्राण आ जाते हैं और प्रतिमा, जीवित,जागृत और चैतन्य हो जाती है ऐसा ही एक उदाहरण पालीताणा में भगवान आदिनाथ की प्रतिमा है जो बोली थी,मूर्ति खंडित हो गई। समिति वालों ने दूसरी मूर्ति बुला ली थी तब प्राचीन मूर्ति बोलने लगी मुझे नहीं उठना है।मेरा एक टुकड़ा नीचे गिरा हुआ है इसे तुम मेरे पास में रख दो यह अपने आप की चिपक जाएगा। इस तरह पालीताणा में दो मूर्तियां आज भी विद्यमान है जो प्राचीन मूर्ति है आज भी वही है और नई मूर्ति बाहर की तरफ है इन दोनों मूर्तियों की पूजन किया जाता है। व्याख्यान में जाप का महत्व बताया कि जाप में इतनी ताकत है कि जाप सब कुछ लाकर दे देता है उसके लिए आप में श्रद्धा होनी चाहिए।नवकार मंत्र भव का बेड़ा पार करता है। श्रद्धा आस्था से जाप किया जाए तो फल देना उसी समय से प्रारंभ कर देता है।एकाग्रचित होकर एक भाव से एक चित् से जाप करते हो तो जाप फलीभूत होता है। जाप के लिए एकाग्र भाव नहीं होगा तो आराधना,साधना निष्फल हो जाती है। सबसे पहले मंत्र से परिचय करो.मंत्र को समझोगे तो आपका मंत्र से परिचय होगा।मंत्र से परिचय होगा तो आप मे प्रेम का उदय होगा तो प्रेम आएगा,तो समर्पण आएगा।मंत्र के प्रति समर्पण आ गया तो परमात्मा के प्रति भी समर्पण आ जाएगा।तब मंत्र सिद्ध होते हैं।
कल आपको प्रवचन में शंखेश्वर पार्श्वनाथ धाम का किन-किन ने जिर्णोध्दार करवाया तथा यशो विजय जी म.सा. को भोजन मैं कुछ नहीं मिलता था। शंखेश्वर आते है और अपने अशुभ कर्मों का नाश कैसे करते हैं इसका व्याख्यान दिया जाएगा। प्रवचन के बाद अठ्ठम तप की दूसरे दिन की आराधना प्रारंभ की गई। जिसमें शरीर की शुद्धि होती है। सौ. वृ.त. त्रीस्तुतिक जैन श्री संघ एवं राज अनंत चातुर्मास समिति, रतलाम के तत्वाधान में व्याख्यान, सिद्धि तप और अट्टम तप में बड़ी संख्या में श्रावक व श्राविकाएं उपस्थित थी।