रतलाम। सम्यक दर्शन जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। आत्मा को जब लगे कि उसका कुछ नहीं है, बस वही सम्यक दर्शन है। सम्यक प्राप्ति के लिए प्रयत्न करो। प्रयत्न करने वाला कभी निष्फल नहीं होता है। यह बात वर्धमान तपोनिधि पूज्य आचार्य देव श्री नयचंद्रसागर सुरीश्वर जी म.सा. ने कही।
सैलाना वालों की हवेली मोहन टॉकीज में चातुर्मासिक प्रवचन देते हुए आचार्य श्री ने कहा कि सिर्फ प्रवचन सुनने से कल्याण नहीं होगा। सुनने के बाद सोचना और जो शंका है उसका समाधान करना होगा। यदि हम कर सकते हैं तो करना चाहिए, नहीं तो श्रद्धा रखें और हमारा सम्यक दर्शन का निर्माण हो यह कामना करें। कोई भी चीज मिलने से पर्याप्त नहीं है, उसका फलीभूत होना आवश्यक है।
आचार्य श्री ने कहा कि आत्मा में अनंत गुण है लेकिन उनके ऊपर दोषों का ढेर लगा है इसलिए हम उन्हें पहचान नहीं पाते हैं। हम आनंद ढूंढने के लिए बाहर से सामान लाकर घर में ढेर लगा रहे हैं लेकिन स्वयं की आत्मा पर ध्यान नहीं दे रहे हैं।
गणिवर्य डॉ. अजीतचंद्र सागर जी म.सा. ने कहा कि सम्यक दर्शन और दृष्टि दोनों का महत्व है। अनुष्ठान करने से पहले, करते वक्त और करने के बाद भी उसके आनंद का माहौल होना चाहिए। इस अवसर पर श्री देवसुर तपागच्छ चारथुई जैन श्री संघ गुजराती उपाश्रय रतलाम एवं श्री ऋषभदेव जी केसरीमल जी जैन श्वेतांबर पेढ़ी रतलाम ने समाजजनो से प्रवचन श्रृंखला में अधिक से अधिक उपस्थित रहकर धर्मलाभ लेने का आव्हान किया।