भाई को भाई से बैर नहीं रखना चाहिए- वितराग मुनि जी

प्रकाश चंद पिपलिया ने 56 उपवास के लिए पचकान

जावरा (अभय सुराणा) । आगम ज्ञाता श्री विकसित मुनि जी म.सा.नवकार आराधक श्री वीतरागमुनि जी म.सा.ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए फ़रमाया की प्रेम, बुद्धि और भक्ति धर्म की मूल आत्मा है। विडंबना है कि हम वर्तमान समय में धर्म के मूल और मर्म को विस्मृत कर चुके है। धर्म का मूल मर्म हमें वैर और वैमनस्यता से दूर रहकर जीवन जीने की बात कहता है। भाई को भाई से बैर नहीं रखना चाहिए,भाईयों के बीच बैर रखने से परिवार की एकता टूटती है और घर में कलह और तनाव बढ़ता है। भाईयों को एक दूसरे से प्रेम और सहयोग करना चाहिए, ताकि वे एक दूसरे की मदद कर सकें और सुख-दुख में साथ दे सकें।आपस के बैर रखने से समाज में भी सौहार्द और एकता की कमी होती है, जिससे समाज में तनाव और विवाद बढ़ते हैं। हमारे बीच प्रेम और सहयोग से जीवन की सफलता में मदद मिलती है, क्योंकि वे एक दूसरे की ताकत और कमजोरियों को समझते हैं और एक दूसरे की मदद कर सकते हैं। भाईयों के बीच बैर रखने से माता-पिता को दुख होता है और वे चिंतित रहते हैं, इसलिए भाईयों को एक दूसरे से प्रेम और सहयोग करना चाहिए ताकि माता-पिता को शांति मिले। उपरोक्त जानकारी देते हुए श्री संघ अध्यक्ष इंदरमल टुकड़िया एवं चातुर्मास समिति के अध्यक्ष कोचट्टा ने बताया की तपरत्न श्री प्रकाशचंद पीतलिया ने गुरुदेव के पावन मुखारविंद से 56 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। धर्मसभा का संचालन सहमंत्री प्रकाश श्रीश्रीमाल ने किया आभार प्रदर्शन उपाध्यक्ष विनोद ओस्तवाल ने माना।