दीक्षा लेने की कोई उम्र नहीं होती – आचार्य देव श्री नयचंद्रसागर सुरीश्वर जी म.सा.

रतलाम, 13 अगस्त। संसार खराब लगने जैसा है क्योंकि यहां वीरागना है। जीवो की विरागना से छूटना है। इसके लिए दीक्षा किसी भी उम्र में ली जा सकती है। दीक्षा में समय, उम्र और परिवार का कोई प्रतिबंध नहीं है। यह बात वर्धमान तपोनिधि पूज्य आचार्य देव श्री नयचंद्रसागर सुरीश्वर जी म.सा. ने सैलाना वालों की हवेली मोहन टॉकीज में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन में कही।
गणिवर्य डॉ. अजीतचंद्र सागर जी म.सा. ने तीर्थ स्थलो की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि संत महात्माओं ने जहां साधना की है, वही स्थान तीर्थ स्थल के रूप में पहचाने जाते हैं। धर्मस्थलों पर चैतन्य शक्ति होती है, क्योंकि वहां महान चेतना द्वारा साधना और भक्ति की गई होती है, इसीलिए इन्हे तीर्थ स्थल कहा जाता है। न्यूटन का लॉ है, यदि कोई ट्रेन तेज गति से दौड़ रही है तो हमारे शरीर में भी वहीं गति आ जाती है। यही वह सूक्ष्म परिवर्तन है जिसे हम महसूस नहीं कर पाते हैं। यदि हम मुंबई की लोकल ट्रेन को देखेंगे तो वह तेज गति से आकर रूकती है, इसी कारण उसमें से उतरने वाले लोग कुछ कदम भागते दिखाई देते हैं, जिससे कि वह संभल सके। तीर्थ स्थल पर भी ऐसा वातावरण है। यदि हम वहां जाएंगे तो उसका लाभ मिलेगा। सूक्ष्म परिवर्तन हमें न दिखाई देते हैं और न महसूस होते हैं लेकिन तीर्थ स्थल जाने से धीरे-धीरे चेतना का निर्माण होगा।
श्री देवसुर तपागच्छ चारथुई जैन श्री संघ गुजराती उपाश्रय रतलाम एवं श्री ऋषभदेव जी केसरीमल जी जैन श्वेतांबर पेढ़ी रतलाम के तत्वावधान में प्रतिदिन प्रवचन जारी है। श्री संघ एवं श्वेतांबर पेढ़ी ने समाजजनो से प्रवचन श्रृंखला में अधिक से अधिक उपस्थित रहकर धर्मलाभ लेने का आव्हान किया।