संसार में सर्वश्रेष्ठ पुण्य भूमि भारत है यहां पर 24 तीर्थंकरों ने जन्म लिया साथ ही कहा कि पर्यावरण बचाने के लिए एक पौधा अवश्य लगाए- साध्वी श्री समकीत गुणा श्री जी मसा.

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रतलाम। सौ.वृ.त. श्री राजेंद्र सूरि त्रिस्तुतिक जैन श्वेतांबर श्री संघ एवं चातुर्मास समिति द्वारा नीम वाला उपाश्रय खेरादी वास में रतलाम नंदन प. पू .श्री 1008 जैन मंदिर के प्रेरणादाता, राष्ट्र संत कोकण केसरी गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद् विजय लेखेन्द्र सूरीश्वर जी म.सा. की आज्ञानुवर्ती एवं मालवमणि पूज्य साध्वी जी श्री स्वयं प्रभा श्री जी म.सा. की सुशिष्य रतलाम कुल दीपिका शासन ज्योति साध्वी जी श्री अनंत गुणा श्रीजी म.सा,श्री अक्षयगुणा श्रीजी म.सा. श्री समकित गुणा श्री जी म.सा. श्री भावित गुणा श्री जी म.सा. उपासना में विराजे हैं जिनका चातुर्मास में नित्य प्रवचन चल रहे हैं इसी तारतम्य में आज 15 अगस्त 2024,गुरुवार को साध्वी श्री साध्वी श्री समकीत गुणा श्री जी ने अपने मंगल व्याख्यान में कहा कि यह भारत भूमि लाल किले और ताजमहल से नहीं पहचाना जाता है यह पहचाना जाता है जैन तीर्थ से,हमारी जन्मभूमि भारत यह हमें इतनी पुण्यवान मिली है इसके लिए जितना वफादार रहेंगे उतना अच्छा है।यह भारत भूमि हमारी मां है यह सभी क्वेश्चन देता है हम उनकी ही संतान है इसलिए हम भारत की भूमि पर तिरंगा लहराते हैं कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक यह हमारी मां है कश्मीर अगर सिर का मुकुट है तो कन्याकुमारी भारत मां के चरण है जिस समुद्र प्रक्षालन करता है।इसलिए हम भारत भूमि पर तिरंगा लहराते तिरंगा तीन रंगों का होता है जो जीवन के विविध आयामों को दर्शाता है जो पूर्णता का परिचायक है। भारत, जिसे ऋषि-मुनियों और महापुरुषों की भूमि के रूप में भी जाना जाता है, एक ऐसा पवित्र देश है जहां अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया और अपनी जीवन यात्रा से पूरे विश्व को प्रेरित किया। जैन धर्म के लिए यह भूमि विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यहीं पर 24 तीर्थंकरों ने जन्म लिया है। इसके अलावा संसार में कहीं तीर्थंकरों का जन्म नहीं हुआ है। इन तीर्थंकरों ने अपने ज्ञान, तपस्या, और साधना के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति की और संसार को धर्म और आध्यात्म का मार्ग दिखाया।
जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव थे। ऋषभदेव को आदिनाथ भी कहा जाता है और वे जैन धर्म के संस्थापक माने जाते हैं। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के अयोध्या में हुआ था। उन्होंने सांसारिक जीवन के बाद संयम, तपस्या और ध्यान के माध्यम से आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया। उन्होंने अपने जैन धर्म को सत्य, अहिंसा और तप का महत्व बताया।
इसके बाद, अन्य 23 तीर्थंकर भी समय-समय पर भारत की इस भूमि पर अवतरित हुए और उन्होंने अपनी साधना और तपस्या से मोक्ष प्राप्त किया। इनमें भगवान महावीर स्वामी का विशेष स्थान है, जो जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे। उनका जन्म बिहार के वैशाली में हुआ था और उन्होंने अपने उपदेशों के माध्यम से अहिंसा, अपरिग्रह, और सत्य की महत्ता को संसार में प्रसारित किया। महावीर स्वामी ने जैन धर्म के सिद्धांतों को व्यवस्थित किया और इन्हें जन-जन तक पहुंचाया।
इन तीर्थंकरों के जीवन का मुख्य उद्देश्य आत्मकल्याण और मोक्ष प्राप्ति था, लेकिन उन्होंने अपनी साधना और उपदेशों के माध्यम से संसार को भी सत्य, अहिंसा, और आत्मशुद्धि का मार्ग दिखाया। हमें अपने जैन धर्म के तीर्थंकरों के उपदेशों का पालन करते हुए जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए और मोक्ष प्राप्ति की ओर अग्रसर होना चाहिए।
भारत की इस महान भूमि पर तीर्थंकरों का जन्म होना न केवल इस देश के लिए बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिए एक वरदान रहा है। इस भूमि की पवित्रता और महानता इस बात से स्पष्ट होती है कि यहां उत्पन्न हुए महापुरुषों ने अपने विचारों और साधना से न केवल भारत, बल्कि पूरे संसार को प्रभावित किया। इन तीर्थंकरों की शिक्षा और उपदेश आज भी हमारे लिए मार्गदर्शक बने हुए हैं।
इस प्रकार, यह भारत भूमि, जहाँ 24 तीर्थंकरों ने जन्म लिया, एक महान और पवित्र भूमि है। इस भूमि की महिमा का गुणगान करते हुए, हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम भी उनके उपदेशों का पालन कर अपने जीवन को धर्ममय और पवित्र बना सकें। इस भूमि पर जन्म लेना अपने आप में एक सौभाग्य है और हमें इस सौभाग्य का सदुपयोग करते हुए आत्मकल्याण की दिशा में अग्रसर होना चाहिए। यह परिषद ने बहुत अच्छा काम कर कि पौधों को लगाने का संकल्प लिया पर्यावरण को बचाने के लिए यह बहुत जरूरी है। आप एक पेड अपने घर में अवश्य लगे.और अगर पेड़ नहीं लगा सके तो पौधा तो जरूर लगाए। उक्त बात प्रवचन में कहीं।
सौ. वृ.त. त्रीस्तुतिक जैन श्री संघ एवं राज अनंत चातुर्मास समिति, रतलाम के तत्वाधान में सुबह 9:00 मसा. के सानिध्य में झंडा वंदन किया गया। इसमें बड़ी संख्या में सिद्धि तप साधक,श्रावक एवं श्राविकाए उपस्थित थी।