साधना-आराधना ठीक से कर लोगे तो मोक्ष हो जाएगा नहीं तो भटकते रहोगे- परम पूज्य साध्वी श्री अनंत गुणा श्रीजी मसा.

रतलाम। सौ.वृ.त. श्री राजेंद्र सूरी त्रिस्तुतिक जैन श्वेतांबर श्री संघ एवं चातुर्मास समिति द्वारा नीम वाला उपाश्रय खेरादी वास में रतलाम नंदन प. पू .श्री 1008 जैन मंदिर के प्रेरणादाता, राष्ट्र संत कोकण केसरी गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद् विजय लेखेन्द्र सूरीश्वर जी म.सा. की आज्ञानुवर्ती एवं मालवमणि पूज्य साध्वी जी श्री स्वयं प्रभा श्री जी म.सा. की सुशिष्य रतलाम कुल दीपिका शासन ज्योति साध्वी जी श्री अनंत गुणा श्रीजी म.सा,श्री अक्षयगुणा श्रीजी म.सा. श्री समकित गुणा श्री जी म.सा. श्री भावित गुणा श्री जी म.सा. उपासना में विराजे हैं जिनका चातुर्मास में नित्य प्रवचन चल रहे हैं ।
इसी तारतम्य में आज 18 अगस्त रविवार को साध्वी श्री अनंत गुणा श्री जी मसा. ने अपने मंगल प्रवचन में कहा कि अनंत उपकारी भगवान महावीर से एक साधक ने प्रश्न किया तो महावीर समझ रहे हैं कि तू जिस व्यक्ति से मोह करता हैवह तेरा नहीं है। यह शरीर भी अनित्य है, वैभव भी अपना नहीं है। क्योंकि यह शाश्वत नहीं है आप लोगों ने अनित्य को नित्य मान लिया और अशाश्वत को शाश्वत मान लिया है और उसी में मग्न हो गए। यह शरीर रूपी पिंजरे के अंदर आत्मा है आत्मा शरीर रूपी पिंजरे में कैद है जब आत्मा उड़ जाती है तो पिंजरा का कोई महत्व नहीं रहता है। घर के लोग भी बोलते हैं जल्दी ले जाओ। इसलिए इस शरीर पर मोह माया नहीं रखना चाहिए। जिस प्रकार से प्रकाश हमेशा विद्यमान नहीं रहता, अंधकार होता है इस तरह सुख और दुख भी आते-जाते रहते हैं कोई भी स्थिर नहीं है।आप लोगों को सुख हमेशा के लिए चाहिए और दुख नहीं आना चाहिए। दुख आता है तो भगवान याद आते हैं और अगर दुख नहीं आए तो भगवान भी याद नहीं आएंगे इसलिए ज्ञानीजन कहते हैं उस सुख को डंडा मारो जो प्रभु को भुलाए।कोई भी दिन रहने वाला नहीं है यह शरीर भी लाइफटाइम रहने वाला नहीं है मैं मैं की आवाज करके जीवन तुम लोग नष्ट कर लेते हो। तुम सिर्फ मेरा मेरा करते हो तुम्हारा कोई नहीं है। जो संन्यास लेते हैं वह बदकिस्मत होते हैं तो वह घर वापस आते हैं। हमारे जीवन में किसी भी प्रकार से कोई टेंशन नहीं है चक्रवर्ती सम्राट जैसा हमारा जीवन है। इस जीवन में आराधना साधना करते रहो तो मुक्ति मिल जाएगी नहीं तो भटकते रहोगे। ज्ञानी जन कहते हैं कि शांति प्रमाणे संत कहिए जो शांति देता है वह संत है। मोह, माया त्याग करके जो परमात्मा से मिले वह जानने वाला है आराधना साधना करते है तो जीवन उत्थान पर चला जाता है आत्मा परमात्मा से जुड़ जाएगी तो मोक्ष हो जाएगा। उक्त बात व्याख्यान में कहीं व्याख्यान के पश्चात आज पांचवी महामांगलिक सुनाई गई और अंत में आरती संपन्न की गई। सौ. वृ.त. त्रीस्तुतिक जैन श्री संघ एवं राज अनंत चातुर्मास समिति, रतलाम के तत्वाधान में बड़ी संख्या में श्रावक,श्राविकाए व सिद्धि तप के साधक उपस्थित थे ।