बेर की भावना रखोगे तो भव पार नहीं हो पाओगे – साध्वी श्री अनंत गुणा श्री जी म. सा.

रतलाम। सौ.वृ.त. श्री राजेंद्र सूरि त्रिस्तुतिक जैन श्वेतांबर श्री संघ एवं चातुर्मास समिति द्वारा नीम वाला उपाश्रय खेरादी वास में रतलाम नंदन प. पू .श्री 1008 जैन मंदिर के प्रेरणादाता, राष्ट्र संत कोकण केसरी गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद् विजय लेखेन्द्र सुरिश्वर जी म.सा. की आज्ञानुवर्ती एवं मालवमणि पूज्य साध्वी जी श्री स्वयं प्रभाश्री जी म.सा. की सुशिष्य रतलाम कुल दीपिका शासन ज्योति साध्वी जी श्री अनंत गुणा श्रीजी म.सा,श्री अक्षयगुणा श्रीजी म.सा. श्री समकित गुणा श्री जी म.सा. श्री भावित गुणा श्री जी म.सा. उपासना में विराजे हैं जिनका चातुर्मास में नित्य प्रवचन चल रहे हैं इसी तारतम्य में आज 23 अगस्त 2024,शुक्रवार को साध्वी श्री अनंत गुणा श्रीजी मसा. ने अपने प्रवचन में बताया कि प्रद्युमन चारित्र में उग्रसेन, कंस और महाराजा श्री कृष्ण का वर्णन मिलता है। उग्रसेन का शत्रु कंस था। आज कई घरों में बेटे ऐसे हैं जो मां-बाप की सुनते नहीं है और घर से बाहर निकाल देते हैं। जो कई प्रकार से मां-बाप को दुखी करते हैं प्रताड़ित करते हैं वह भी कंस से काम नहीं है। यह संसार स्वार्थमय है।लोग लेने के लिए तो आ जाते हैं देने वाला कोई नहीं है।आपके पास पैसा है तो सब सेवा करने के लिए तैयार हो जाएंगे वरना कोई पूछता नहीं है।इसलिए पैसे को अच्छे कार्य में, धर्म में खर्च करो हम संतों का एक ही धर्म है इसमें ना कोई गरीब होता है, ना कोई अमीर होता है, ना कोई ऊंचा होता है,ना कोई नीचा होता है। हमें तो सभी को धर्म लाभ देना है। हम धर्म लाभ और प्रवचन नहीं देंगे तो अधर्म हो जाएगा।
पर्युषण पर्व क्षमा पर्व आने वाला है हम क्षमा किसको देंगे मां बाप को मिच्छामि दुक्कडम् नहीं देंगे और दूसरों से क्षमा क्षमा मांगेंगे। सबसे पहले जिससे आपकी बैर है या लड़ाई है उससे आपको मिच्छामी दुक्कड़म करना चाहिए। ऐसे ही आपके जीवन में बेर की चिंगारी खत्म हो सकती है। क्योंकि आपने अपने जीवन में बेर की चिंगारी लगा ली उसे बुझाने की कोशिश नहीं कि तो आपके कितने ही भव बिगाड़ देगी।जितना सरल अपनी आत्मा को बनाओगे तुम इतना ही झुकोगे और झुके बिना जीवन में कुछ मिलने वाला नहीं है।जो जीवन में झुकता है वह जीवन में सब कुछ प्राप्त कर लेता है।क्योंकि जैसा कर्म करते हो वैसा ही फल मिलता है वैसा ही कर्म उदय में आता है इसलिए कर्म करते वक्त विचार करो कि मेरे आगे का कर्म बंधन क्या होगा और इसका फल मुझे कैसे मिलेगा और आपने अगर बेर की परंपरा चालू रखी तो भुगतना तो पड़ता ही है।अच्छे कर्म करोगे तो हंसते रहोगे, नहीं तो रोते-रोते कर्म को भोगना पड़ेगा। उक्त बात प्रवचन में कहीं।
साध्वी श्री समकित गुणा श्री जी मसा ने अपने प्रवचन में बताया कि शांत सुधा रस ग्रंथ के रचयिता श्री उपाध्याय विनय विजय जी मसा.हर रोज नया चैप्टर बताते हैं। इस चैप्टर के द्वारा अपनी आत्मा का बोध हो ज्ञान हो यह समझाया है। कल बताया था कि शरीर अनित्य है, नाशवान है। आज इस संसार में कोई भी वस्तु शाश्वत रहने वाली नहीं है चाहे वह गरीब हो अमीर हो किसी के पास में भी अमर वस्तु नहीं है। यह संसार परिवर्तनशील है। ज्ञानी जन कहते हैं वह दूसरे से आशा नहीं रखते है स्वयं की आशा रखते हैं संसार में लड़ाई की वजह एक दूसरे से आशा करते हैं। झगड़ा, क्लेश खत्म हो जाए अगर स्वयं से आशा रख तो क्योंकि पर की आशा हमेशा निराशा ही लगती है।उक्त विचार व्यक्त किये।
सौ. वृ.त. त्रीस्तुतिक जैन श्री संघ एवं राज अनंत चातुर्मास समिति, रतलाम के तत्वाधान में बड़ी संख्या में श्रावक एवं श्राविकाए उपस्थित थी।