प. पू. राष्ट्र संत शिरोमणि हेमेंद्र सुरीश्वर जी म.सा. की 14 वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित की गई

रतलाम 24 अगस्त । सौ.वृ.त. श्री राजेंद्र सूरी त्रिस्तुतिक जैन श्वेतांबर श्री संघ एवं चातुर्मास समिति द्वारा नीम वाला उपाश्रय खेरादी वास में रतलाम नंदन प. पू .श्री 1008 जैन मंदिर के प्रेरणादाता, राष्ट्र संत कोकण केसरी गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद् विजय लेखेन्द्र सुरीश्वर जी म.सा. की आज्ञानुवर्ती एवं मालवमणि पूज्य साध्वी जी श्री स्वयं प्रभा श्री जी म.सा. की सुशिष्य रतलाम कुल दीपिका शासन ज्योति साध्वी जी श्री अनंत गुणा श्रीजी म.सा, श्री अक्षयगुणा श्रीजी म.सा. श्री समकित गुणा श्री जी म.सा. श्री भावित गुणा श्री जी म.सा. उपासना में विराजे हैं । जिनका चातुर्मास में नित्य प्रवचन चल रहे हैं इसी तारतम्य में आज शनिवार को परम पूज्य राष्ट्र संत शिरोमणि हेमेंद्र सुरीश्वर जी मसा की 14वीं पुण्यतिथि है। इस अवसर पर प्रवचन के पूर्व हेमेंद्र सुरीश्वर जी मसा के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्वलित कर श्रद्धांजलि दी गई। प्रवचन में कहां की जितने भी महान आत्माएं हुई है इस भारत भूमि पर अपनी आत्मा का कल्याण किया है और दूसरों के लिए भी कुछ ना कुछ देकर गए हैं। महापुरुष आज हमारे वचन सिद्ध 14वां स्वर्गारोहण का दिन है परम पूज्य हेमेंद्र सूरीश्वर जी म सा के गुण, चरित्र,पवित्र क्रिया के प्रति जागरूक रहे हैं। साधना और क्रिया करने के लिए हमेशा 24 घंटे तत्पर रहते थे तुरंत खड़े हो जाते थे मुझे जीवन मिला है तो कुछ ना कुछ करके ही जाना है जाप भी गुप्त रखते थे। महान आत्माओं की खासियत रहती है राजेन्द्र सूरी जी महाराज को से बहुत प्रेम था और नियम भी कड़क थे। जिस दिन जाप नहीं करते थे उसे दिन गोचरी भी नहीं करते थे उन्हें राग, द्वेष नहीं था ज्यादा से ज्यादा धर्म की क्रिया में बिताते थे। वे कहते थे पहले मैं भजन करूंगा उसके बाद गौचरी करूंगा यह सब महापुरुषों के गुण होते हैं। अनंत गुणा श्री जी कहते हैं कि मेरी एक आदत है मैं बुजुर्गों के अनुभव को पहले लेती हूं और आजकल नई पीढ़ी ऐसी हो गई है कि वह बुजुर्गों की सुनती ही नहीं। महापुरुषों का जीवन कष्ट वाला होता है क्योंकि यह जनमानस को सीखने के लिए, समझने के लिए अवतरित होते हैं और अपने कर्मों के माध्यम से क्रिया के माध्यम से साधनाओं के माध्यम से श्रेष्ठता प्राप्त करते हैं। राजेंद्र सूरी जी मसा.के अंतिम शिष्य हर्ष विजय जी मसा. के शिष्य हेमेंद्र सुरीश्वर जी रहे। जितने गुरु सीधे-साधे होते हैं सरल होते हैं उनके शिष्य भी इतने ही सरल होते हैं 17 साल की उम्र में उन्होंने दीक्षा ली और 93 साल तक रहे उन्होंने जीवन में किसी भी से किसी से भी ?1 तक नहीं मांगा। महापुरुषों के जीवन में अनुभव लेना सीखो। दूसरे पंथ के गुरु के शिष्य गुरु की आज्ञा का पालन करते हैं और अपने यहां खाली उनकी सुनते हैं मानते नहीं। मैंने अपने जीवन में दो गुरुओं के साथ रही 25 साल मैंने जयंत सेन गुरु जी के सानिध्य में निकले तथा 15 साल में हेमेंद्र सुरीश्वर जी के साथ रही दोनों मुझे अपनी पुत्री जैसा रखते थे। सभा में श्रद्धांजलि कराई गई तथा तीन बार नवकार मंत्र से श्रद्धांजलि दी गई।
कल रविवार को प्रात: शक्रस्तव अभिषेक किया जाएगा। जिसमें भगवान का औषधीय से अभिषेक होगा। इससे जीवन में यश, मान पद,प्रतिष्ठा,ऐश्वर्य की बढ़ोतरी होगी। सौ. वृ.त. त्रीस्तुतिक जैन श्री संघ एवं राज अनंत चातुर्मास समिति, रतलाम के तत्वाधान में बड़ी संख्या में श्रावक एवं श्राविकाए उपस्थित थी।