धर्म हमें भय में जीना नहीं सिखाता धर्म तो हमारे अंदर का डर भगाता है – ध्यान योगी आगम ज्ञाता श्री विकसित मुनि जी

जावरा (अभय सुराणा) । जितना हम समझ पाते है दुख का संबंध हमारे मन से है जैसे तुम्हारी बात सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ या तुम्हें कष्ट में देखकर मुझे बहुत दुख हुआ किंतु कष्ट का संबंध शारीरिक व्याधियों से है जैसे बीमारी के कारण मैं लगातार शारीरिक कष्ट झेल रहा हूं। किसी के द्वारा यातना देने पर शारीरिक और मानसिक दोनों तरह का कष्ट होता है। दुख की अपेक्षा कष्ट अधिक कठिन है। दिवाकर भवन जावरा में नियमित प्रवचन के दौरान आध्यात्मिक विचार व्यक्त करते हुए चातुर्मास हेतु विराजित ध्यान योगी आगम ज्ञाता श्री विकसित मुनि जी म.सा.नवकार आराधक श्री वीतरागमुनि जी म.सा. धर्मसभा को संबोधित करते हुए फ़रमाया की धर्म हमें भय में जीना नहीं सिखाता धर्म तो हमारे अंदर का डर भगाता है लेकिन वास्तव में हम डर वाला धर्म ही कर रहे हैं हम सुखी हो सम्पन्न हो पारिवारिक शान्ति उन्नति हो यह सोच कर धर्म करते हैं। जबकि जो प्राप्त है वह पर्याप्त है कि शिक्षा धर्म देता है।
उपरोक्त जानकारी देते हुए श्री संघ अध्यक्ष इंदरमल टुकड़िया एवं चातुर्मास समिति के अध्यक्ष पुखराज कोचट्टा ने बताया की तपरत्न श्रीमान प्रकाशचंद जी पीतलिया ने गुरुदेव के पावन मुखारविंद से 75 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। तप अनुमोदनार्थ श्री जैन दिवाकर महिला मंडल एवं बहु मंडल द्वारा चोविसी का आयोजन किया गया। दिनांक 1 सितम्बर से आठ दिवसीय पर्युषण पर्व प्रारंभ हो रहें हैं जिसमें प्रतिदिन 8.30 से 9 बजे अंन्तगड़ सुत्र का वांचन उसके पश्चात प्रवचन की श्रृंखला निरंतर गतिमान रहेगी। नवकार महामंत्र के अखंड जाप के साथ विभिन्न धार्मिक गतिविधियों जप तप धर्म आराधना के साथ श्रावक-श्राविकाओं द्वारा पर्युषण पर्व दिवाकर भवन पर मनाया जाएगा। धर्मसभा का संचालन महामंत्री महावीर छाजेड़ ने किया आभार प्रदर्शन उपाध्यक्ष विनोद ओस्तवाल ने माना।