मंदिर और शास्त्र संभाल लोगे तो धर्म अपने आप संभल जाएगा – साध्वी श्री अनंत गुणा श्री जी म.सा.

रतलाम 3 सितंबर । सौ.वृ.त. श्री राजेंद्र सूरी त्रिस्तुतिक जैन श्वेतांबर श्री संघ एवं चातुर्मास समिति द्वारा नीम वाला उपाश्रय खेरादी वास में रतलाम नंदन प. पू .श्री 1008 जैन मंदिर के प्रेरणादाता, राष्ट्र संत कोकण केसरी गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद् विजय लेखेन्द्र सूरीश्वर जी म.सा. की आज्ञानुवर्ती एवं मालवमणि पूज्य साध्वी जी श्री स्वयं प्रभा श्री जी म.सा. की सुशिष्य रतलाम कुल दीपिका शासन ज्योति साध्वी जी श्री अनंत गुणा श्रीजी म.सा,श्री अक्षयगुणा श्रीजी म.सा. श्री समकित गुणा श्री जी म.सा. श्री भावित गुणा श्री जी म.सा. उपासना में विराजे हैं । जिनका चातुर्मास में नित्य प्रवचन चल रहे हैं ।
इसी तारतम्य में आज मंगलवार को परम पूज्य साध्वी श्री अनंत गुणा श्रीजी म.सा. ने अपने मंगल व्याख्यान में बताया कि भारतीय संस्कृति के सभी संप्रदायों में दो चीज मिलती हैं और दो चीज समझ में आ जाती है तो पूरा ग्रंथ समझ में आ जाता है वह दो चीजें मंदिर और शास्त्र है। मंदिर और शास्त्र नहीं होते तो धर्म को समझ नहीं पाते। शंखेश्वर पारसनाथ हजारों साल पुराना है जिसके पास शास्त्र नहीं है जिसके पास में मंदिर नहीं है उसके पास में धर्म भी नहीं है। इन शास्त्रों को समझने के लिए धर्म बना है। हर धर्म के पास शास्त्र है हिंदुओं के पास रामायण है, मुसलमान के पास कुरान है। सिखों के पास में गुरु ग्रंथ साहिब है और ईसाइयों के पास में बाइबल है। बोध्दो के पास त्रिपट है ऐसे ही जैनो के पास में 45 आगम है। जिसके पास 45 आगम है वह कितना महान है उसे हमने समझा ही नहीं 45 आगम में तीन चीज हैं। गणधर भगवान शास्त्रों को लिखते हैं तो समाज के पास पहुंचता है परमात्मा देषणा देते हैं और गणधर लिखते हैं आगम में चार चीज होती कथनानुसार योग, द्रव्यानुसार योग, गणितानुसार योग और चरण करणानुसार योग है। कथनानुसार योग में महापुरुषों का चरित्र रहता है। द्रव्यानुसार योग में द्रव्य के गुण आदि आते हैं। गणितानुसार योग में जैसे समुद्र की गहराई लंबाई चौड़ाई इत्यादि आता है और चरणानुसार योग में आचार्य की विशेष क्रियाएं आती है। कल्पसूत्र मैं भगवान के निर्माण के 170 बाद भद्रबाहु स्वामी ने लिखा है जो नेपाल में भूटान में लिखा गया था उन्होंने 12 वर्ष तपस्या के बाद ज्ञान प्राप्त किया। पहले जो साधक होते थे उन्हें श्रुत ज्ञान होता था वह सुनने से याद कर लेते थे परन्तु धीरे-धीरे सब भुलते चले गए और समाज में लुप्त नहीं हो जाए इसलिए ग्रंथ लिखना चालू किया। 500 आचार्य को इक_ा ग्रंथ लेखन प्रारंभ किया और आज भी बलवीरपुर की पालीताणा में प्रतिमा है। लिखने के लिए उनके पास पेन और किताब नहीं होती थी ताड़पत्र पर लिखा जाता था और बैलगाड़ी के पहिए का ग्रीस और गुड़ मिलाकर अनार की कलम बनाकर लिखते थे। अभी जैन धर्म दो भागों में है एक भाग मंदिर है और दूसरा भाग शास्त्र है जो आप लोग शास्त्र कभी पढऩे नहीं और मंदिरों का मूल्य आप लोगों ने नहीं जाने के कारण घटा दिया है। आपके पास नो टाइम का बोर्ड लगा हुआ है तो ज्ञान कहां से आएगा । 4 महीने प्रवचन सुन लो तो कितना ज्ञान प्राप्त हो जाएगा इसकी कल्पना की जा सकती है । पर्युषण पर्व के बाद उपाश्रय खाली मिलता है। आप लोग गप्पे मारते हैं तो उसमें कर्म बंधन हो जाता है यह मालूम और यह मालूम नहीं पड़ता कि कर्म बंधन हो गया है। इस कल्पसूत्र में 24 तीर्थंकर का चरित्र रहता है और सबसे पहले महावीर स्वामी का नेमिनाथ का और पार्श्वनाथ का विस्तृत रूप से है उसके बाद सभी तीर्थंकरों का आता है। सबसे पहले पेंटिंग जापान में हुई वहां से भारत लाई गई। ध्रुव सेन राजा थे चतुर्मास चल रहा था और उसने उनके बेटे की मृत्यु हो गई थी। उसे समय गुरु महाराज ने के चातुर्मास चल रहे थे ।
उन्होंने कहा कि महाराज को आना चाहिए महाराज ने बोला पंचमी के दिन मैं नहीं आ सकता और एक दिन पहले या बाद में आ जाओ तब महाराज ध्रुवसेन आए तब से संवतसरी चौथ के दिन से प्रारंभ हुई। कल्पसूत्र ग्रंथ में पढऩे वाले गुरु भी उच्च कोटि के होना जरूरी है। कल्पसूत्र चढ़ावा लेकर हाथी पर बजे बजे के साथ उपस्थिति में म.सा. को देकर प्रार्थना करते हैं कि आप कल्पसूत्र समझाएं कल्पसूत्र का वाचन करें क्योंकि कल्पसूत्र समझना और समझना सामान्य व्यक्ति के बस की बात नहीं है बताने वाला उत्तम होना चाहिए। उक्त बात प्रवचन में कहीं। आज शाम को भगवान की अंग रचना ऊन से की गई तथा रात्रि को 8 से 10 बजे तक भजन आयोजित किए गए। सौ. वृ.त. त्रीस्तुतिक जैन श्री संघ एवं राज अनंत चातुर्मास समिति, रतलाम के तत्वाधान में बड़ी संख्या में श्रावक एवं श्राविकाए उपस्थित थी।