मोक्ष के चार रास्ते दान, शील, तप, भाव और ज्ञान, दर्शन, चरित्र,तप – मालव गौरव पूज्याश्री प्रियदर्शनाजी म.सा.

रतलाम । श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ नीमचौक रतलाम पर पर्युषण महापर्व चतुर्थ दिवस पर आयोजित प्रवचन में जिनशासन चंद्रिका, मालव गौरव पूज्याश्री प्रियदर्शनाजी म.सा. (बेरछावाले) एवं तत्वचिन्तिका पूज्याश्री कल्पदर्शनाजी म.सा.
मोक्ष के चार रास्ते दान, शील, तप, भाव और ज्ञान, दर्शन, चरित्र,तप । दोनों प्रकार के रास्तों में केवल तप ही ऐसा रास्ता है जो दोनों में कॉमन है। भारतीय संस्कृति में तप और त्याग प्रधान है। यँहा तप और त्याग को महत्व दिया जाता है। सभी धर्म ग्रंथो में तपस्या का महत्व बताया गया है। कहा गया है भले ही रोज गधे जैसा चर लेकिन एकादशी तो कर।
बोद्ध धर्म के अनुसार तप और ब्रह्मचर्य बिना पानी का वो स्नान है जिससे आत्मा निर्मल होती है। इस्लाम में भी तप का बहुत महत्व है, रमजान के महीने में रोजे के दौरान थूक तक भी नही निगलते है। तपस्वी जिन शाशन की आनबान और शान होते है, तपस्वी को तो देवता भी पूजते है ।
तप में तीन बातों का त्याग करोगे तो वह शुद्ध तप बन जाएगा। विषय कषाय और आहार। तप में आहार तो छोड़ते ही है लेकिन साथ ही तपस्वी को यह ध्यान रखना चाहिए की तप के दौरान क्रोध हावी न होने पाए। तप के दौरान यदि क्रोध कषाय बढ़ता है तो ऐसा तप निर्रथक है।
क्रोध, मान, माया और लोभ कषाय है एवं इन्द्रियों के अनुकूल सेवन विषय है। इन्द्रियों की अनुकूलता का त्याग तप कहलाता है। जिंदगी में बहुत ही मुश्किल से तप के भाव बने है तप हो रहा हो तो उस वक्त पाँच इन्द्रयों का निषेध करना चाहिए, टीवी, मोबाइल आदि से दूर रहना चाहिए।
चक्रवर्ती जो कि 6 खण्ड के अधिपति होते है वे भी एक खण्ड पर विजय प्राप्त करने के लिये पहले तेले तप की आराधना करते है। विषय और कषाय का त्याग करके जो तप करते है उसकी तो देवता भी रक्षा करते है और सम्मान करते है। सभी तपों में ब्रह्मचर्य का पालन करना श्रेष्ठ तप है। देव, दानव, भूत, पिशाच भी ब्रह्मचारी की स्तुति करते है। ब्रह्मचर्य का पालन से आत्मा निर्मल होती है, शरीर स्वस्थ रहता है।
भगवान महावीर ने नवकारसी को भी तप बताया है । सूर्योदय के 48 मिनिट बाद ही अन्न जल ग्रहण करना नवकारसी तप है । रात्रि भोजन त्याग भी तप है। एक वर्ष लगातार रात्रि भोजन के त्याग से 6 मासक्षमण का लाभ मिलता है ।