जीवन में आनंद चाहते हो तो ज्ञान के साथ विवेक का उपयोग कीजिए

भगवान महावीर के जन्म वाचन के पांचवें दिन आगम ज्ञाता ध्यान योगी श्री विकसित मुनि जी म. सा. एवं नवकार मंत्र आराधक वितराग मुनि जी महाराज साहब ने कहा

जावरा (अभय सुराणा ) । दिवाकर भवन पर चल रहे पर्युषण पर्व के अंतर्गत आज भगवान महावीर के जन्म वाचन के पांचवें दिन आगम ज्ञाता ध्यान योगी श्री विकसित मुनि जी महाराज साहब एवं नवकार मंत्र आराधक वितराग मुनि जी महाराज साहब ने अंतगढ़ सुत्र का वांचन करते हुए कहा कि बाल्यावस्था एक ऐसी अवस्था है, जिसमें हित अहित का विवेक नहीं रहता। युवावस्था उस वन के समान है, जिसमें यदि भटक गये तो रास्ता ही नहीं मिल पाता। श्रावक को भी हंस जैसा श्रोता होना चाहिए, क्षीर, नीर विवेक वाला । त्याग करते समय जल्दबाजी नहीं बल्कि विवेक के साथ ही किसी वस्तु का त्याग करे । भले ही थोड़ा-सा त्याग करो लेकिन विवेक, आस्था दृढ़ता के साथ करिये उसका अच्छा प्रभाव पड़ता है एवं फल भी अच्छा मिलता है। जिस प्रकार ड्रायवर गाड़ी अच्छी चलाता हो, लेकिन शराब पीता हो तो उससे खतरा ही समझो । वैसे ही तपस्या बहुत अच्छी हो लेकिन विवेकपूर्वक नहीं हो तो उससे खतरा ही समझो।विवेकशील व्यक्ति को थोड़ा-सा भी अभिमान नहीं करना चाहिए, अतिविश्वास कभी भी लाभप्रद नहीं होता।राग कभी भी धर्म नहीं हो सकता, दया भी विवेक के साथ होती है। विनय, विवेक के साथ होती है, इसलिए विनय में भय नहीं होता। विनय में हाथ जुड़े होते हैं और भय में हाथ कांपते हैं। विनय सम्यक दर्शन के साथ रहती है और भय कषाय के साथ रहता है।विवेक वही है, जिससे दोषों का निराकरण हो । विनय से पाप का घात होता है और सभी प्रकार की कलाएँ प्राप्त हो जाती हैं प्रायश्चित लेने वाले के पास विनय गुण आ जाता है विनय के माध्यम से श्रुतसागर बन जाते हैं और संसार सागर को पार कर जाते हैं। छ:आवश्यकों का पालन करना भी तप की विनय है गुणाधिक के प्रति यथायोग्य विनय करना हमारी प्रसन्नता को व्यक्त करना है विनय से शत्रु भी मित्र बन जाते हैं । जीवन में आनंद चाहते हो तो ज्ञान के साथ विवेक का उपयोग कीजिए । जो आत्मा पर मोह, कषाय की पर्तें पड़ी हैं, उसे अलग करके चेतन को पाना ही सबसे बड़ा विवेक है। प्रत्येक मानव का लक्ष्य धन कमाना नहीं, बल्कि आत्म धर्म पाना होना चाहिए । विवेक एक ऐसी सम्पदा या प्रकाश है, जिससे हम हमेशा के लिए प्रकाशित हो सकते हैं संसार में संतुष्टि यदि मिल सकती है तो विवेक से ही मिल सकती है। विवेक ही जीवन का सार है।
उपरोक्त जानकारी देते हुए श्री संघ अध्यक्ष इंदरमल टुकड़िया एवं चातुर्मास समिति के अध्यक्ष पुखराज कोचट्टा ने बताया की तपरत्न श्रीमान प्रकाशचंद जी पीतलिया ने गुरुदेव के पावन मुखारविंद से 81 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। 111 सामुहिक तेले के पारणे का लाभ श्रीमती चंदरबाई बाबुलालजी ओस्तवाल की स्मृति में चित्रा ज्ञानचंद चिराग चिकां अमित शिरोनी क्रिशिव ओस्तवाल परिवार ने लिया। बालिका मंडल द्वारा महावीर जन्म पर सुन्दर नाटक का मंचन किया गया। बहु मंडल चौपाटी, मोनिका कोचट्टा ने स्तवन की प्रस्तुति दी।प्रवचन की प्रभावना का लाभ मांगीबाई समरथमल भंडारी परिवार, गुप्त महानुभव, एवं श्री राजेंद्र जी दुग्गड परिवार ने लिया धर्मसभा का संचालन महामंत्री महावीर छाजेड़ ने किया आभार प्रदर्शन उपाध्यक्ष विनोद ओस्तवाल ने माना।