लेख : सत्ता और शक्ति का चलन

अशोक मेहता, इंदौर (लेखक पत्रकार पर्यावरणविद्)

जब से मानव सभ्यता का जन्म हुआ है तभी से सत्ता और शक्ति का बोलबाला बना हुआ है। हर बड़ा वर्ग अपने से छोटे तबके को गुलाम की तरह समझ रहा है।
मालिक अपने नौकर पर, अधिकारी अपने अधीनस्थ पर, शासन प्रशासन पर, गुंडा अपने क्षेत्र की जनता पर, यानी जो भी चाहे पद से धन से या ताकत से बड़ा है वह अपने से छोटे और निर्बल पर सदैव राज करता है।
अपने से बड़े रईस, सेलिब्रिटी या बड़ी दुकान अथवा शोरूम देखकर व्यक्ति के हाव-भाव बिल्कुल अलग हो जाते हैं, मॉल में खरीदी करते वक्त भाव ताव नहीं करेगा परंतु छोटे व्यापारी स्ट्रीट वेंडर सब्जी वाला या स्टॉल वालो से वह भरपूर भाव ताव करता है । मिडिल क्लास और लोअर मिडल क्लास की तो बात ही अलग है वह अपने आप को बड़ा दिखाने के लिए कभी पीछे नहीं हटेगा चाहे कर्ज लेना पड़े। ऐसे अनेक उदाहरण है कि ऐसे व्यक्ति अपने कार्यक्रमो में हैसियत से ज्यादा खर्च करते है और फिर दुखी रहते हैं। हम जो हैं जैसै है वही अच्छा हैं यह देखना और समझना भगवान जाने व्यक्ति कब सीखेगा पर हां जो यह सीख चुके हैं वह सबसे सुखी हैं।
ना मैं किसी से बड़ा हूं और ना हीघ किसी से छोटा हूं यही एक दृढ़ इच्छा शक्ति व्यक्ति ने रखना चाहिए।
आर्थिक स्तर पर जातिगत स्तर पर या कामकाज अथवा ओहदे को देखकर कभी किसी को छोटा नहीं समझना चाहिए सभी को प्यार और सम्मान देना चाहिए और उन्होने भी अपने से बड़ों का आदर करना चाहिये। इसे ही राम राज्य कहेंगे।