जैन दिवाकर जी की 147 वीं जन्म जयंती व उपाध्याय श्री की 119 वीं दीक्षा जंयती पर नमंन – मोतीलाल बाफना (पत्रकार)

मोतीलाल बाफना (पत्रकार)

जगत वल्लभ प.पू. श्री जैन दिवाकर जी म.सा. गुरूदेव का चातुर्मास विक्रम संवत् 2006 को रतलाम के नीम चौक श्री संघ में आयोजित हुआ था। गुरुदेव का कोटा में अंतिम चातुर्मास उस वक्त भारी जनमेदनी सर्व धर्म की एकता उपदेशों के साथ हुआ। उसके बाद कोटा चातुर्मास मे रहने बाद मे गुरूदेव का अचानक देवलोकगमन हो गया। उस वक्त मेरा जन्म नहीं हुआ था। पुज्य दादाजी खेमराजजी बाफना, पिताजी कांतिलाल जी बाफना का चातुर्मास के दौरान व बाद में नीमचौक में रहते हुए गुरुदेव के प्रति आस्था, निष्ठा बढी व नीमचौक मे आने वाले गुरुभंगवतो की सेवा का अवसर परिवार को मिला। उपाध्याय ज्योतिषाचार्य गुरुदेव श्री कस्तूरचंद जी म. सा. का आशीर्वाद हमारे परिवार पर था। मुझे धार्मिक, सामाजिक गतिविधियों तथा जीवदया आदि सेवा के कामों से जुडने की प्रेरणा दी। बाद में वर्ष 1977 मे जैन दिवाकर नवयुवक मंडल रतलाम में सक्रियता के चलते संघ की गतिविधियों मे भाग लेने लगे। सन् 1997 में राष्ट्रसंत कमल मुनिजी के चातुर्मास में संयोजक के रूप में कार्य कर श्रावक-श्राविकाओ, युवकों आदि समाजजनो के सहयोग से ऐतिहासिक चातुर्मास रतलाम नीमचौक संघ में सम्पन्न हुआ और उस समय व्यवस्था में परिवर्तन हुआ था जो आज तक निरंतर चल रही है। उस वक्त प्रथम बार श्री जैन दिवाकर जंयती पर अ.भा. जैन दिवाकर श्रावक सम्मलेन भी आयोजित किया गया था।


प.पू. गुरुदेव की दृष्टि व आशीर्वाद मेरे तथा हमारे परिवार पर सदैव रहा है । गुरु के अलावा समयानुसार वर्ष 1980 के लगभग विदेशों में भारतीय जैन संस्कृति का प्रचार कर भारत वापस आने पर विश्वपुज्य आचार्य सुशीलकुमारजी म.सा. जी से लुधियाना प्रवास के दौरान सम्पर्क में आया। उसके बाद मे हमारे नगर के समाजबंधुओं साथियों के सहयोग से हमने आचार्य श्री को रतलाम लाने के प्रयास किये और रतलाम आगमन के लिए हमको दिक्कतों का सामना करना पड़ा है । उसके बाद विश्वपुज्य आचार्य सुशीलकुमारजी म.सा. का रतलाम में प्रवास व कार्यक्रम आयोजित हुआ।


तब गुरुदेव उपाध्याय श्री जी व गुरुदेव मालवकेसरीजी म.सा. के मिलने का सौभाग्य मिला । पूज्य गुरुदेव जैन दिवाकरजी का आशीर्वाद ही मेरा सहारा बनी और मैंने अपने जीवन में जैन दिवाकर का नाम आस्था व श्रद्धा से लेकर कार्य किया उसमें मुझे सफलता मिलती गई । मेरे ऊपर गुरुदेव दिवाकरजी का आशीर्वाद रहा है । मैंने वर्ष 2005 में नई दिल्ली में प्रवास के दौरानअ.भा. जैन दिवाकर विचार मंच नई दिल्ली का रतलाम के एड्रेस पर आल इंडिया रंजिस्ट्रेशन करवा कर कार्य करने की मुझे शक्ति गुरुदेव के आशीर्वाद से ही मिली । मेरे द्वारा पुरे भारत में गुरुदेव के संदेशों, विचारों के अनुरूप कार्य किया और मुझे समय-समय पर गुरुभंगवतो का सानिध्य भी मिलता रहा यही गुरु शक्ति का आधार रहा कि मुझेअपने जीवनकाल में मुझे स्पष्ट, निडरता से रहने तथा बोलने की शक्ति मिली और यह गुरूदेव का आशीर्वाद का प्रताप है कि मुझे हर क्षेत्र में मिलती गई। यह सब देने गुरुदेव जैन दिवाकर जी का आशीर्वाद मेरी कुंजी थी ऐसे गुरुदेव जी की 147 वीं जन्म जयंती व मालव रत्न उपाध्याय श्री की 119 वीं दीक्षा जंयती पर नमन वंदन करता हुं आप गुरुभंगवतो का आशीर्वाद सदैव मेरे तथा मेरे परिवार पर बनी रहे । मेरे द्वारा सामाजिक क्षैत्र में सक्रियता पूर्वक कार्य के दौरान समाज के विभिन्न संगठनों के पदाधिकारी माननीय श्री लक्ष्मीचंदजी तालेडा, वीरेंद्रजी धाकड, विजय जी लोढा आदि उदयपुर जयपुर, डुंगरा, बड़ीसादडी, नीमच, पिपलिया मंडी, मंदसौर, जावरा, इन्दौर दिल्ली, मुम्बई, पुना, बंगलौर, जौधपुर, आदि देशभर में आदि गुरू भक्तोंसे मेरा सम्पर्क बना । अ.भा. स्थानकवासी जैन कांफ्रेस नई दिल्ली के राष्ट्रीय पदाधिकारियों से परिचय हुआ । जैन कांफ्रेंस के पदाधिकारी श्री हीरालालजी जैन लुधियाना, सुभाषजी ओसवाल, प्रो. रतन जैन, रा. अध्यक्ष श्री संचालालजी बाफना, हस्तीमल मूणोत, कांतिलाल जी जैन, सुवालालजी बाफना, पारसजी छाजेड, अविनाश जी चौडरीया, केसरीमलजी बुरुड का भी सहयोग मुझे प्राप्त हुआ । अ.भा. जैन दिवाकर विचार मंच रजि, दिल्ली के कार्यक्रम में रतलाम, जावरा, मंदसौर नीमच, राजस्थान आदि राज्यो से आए गुरू भक्तो को गुरुभंगवतो का आशीर्वाद और सहयोग मिला यही जैन दिवाकरजी का आशीर्वाद मेरे पर है, और रहेगा ऐसा विश्ववास है ।
मेरे जीवन में यंह सब जो हूआ जैन दिवाकरजी की दिव्यदृष्टि का आशीर्वाद ही तो है ।
मेरे कंधे से कंधा मिलाकर साथ देने वालो मे अभयजी सुराणा जावरा, विजय जी खटोड़, आशिष जी मंदसौर आदि देश के अलग-अलग क्षैत्रों में निवास करने वाले गुरूभक्तोंका सहयोग मिला । वहीं हमारे रतलाम के साथी बिछुड़ गये, हम सबकी संघ मे सुनी जाती थी । अब में भी खराब स्वास्थ्य की वजह से घर पर आराम कर समाज व संगठन में सक्रियता से पीछे हट गया हूं। हमारा जैन दिवाकरीय संघ मजबुती से एकता से काम कर रहा है मुझे खूशी आंनद है ।
जय गुरू जैन दिवाकर
आपका सेवक शिष्य
गुरुभक्त श्रावक मोतीलाल बाफना रतलाम पत्रकार