जो करता है बड़ों का कायदा उसे होता है फायदा : श्रमणाचार्य विमदसागर

रतलाम (डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुजÓ)। । कितना समय परिवर्तन हो गया है। पहले के लोग मर्यादा में रहते थे। मोटा खाते थे और मोटा पहनते थे। पर आज के लोग पतला खाते हैं और पतले पहनते हैं। आचार्य भगवान कहते हैं-
जो करता है बड़ों का कायदा, उसे होता है फायदा।
जिसने न मानी बड़ों की सीख, ले खपरिया मांगी भीख।।
आचार्यश्री की संघस्थ ब्रह्मचारिणी सविता दीदी ने बताया कि ये शब्द रतलाम में विराजमान श्रमणाचार्य विमदसागर जी मुनिराज ने 18 दिसंबर को एक धर्म सभा में कहे। उन्होंने आगे कहा कि पहले महिलाएं कितना घूंघट रखती थीं पर आज के समय में घुंघट का बहू से कहोगे तो घर छोड़ देगी। साड़ी का कहोगे तो लड़ाई- झगड़ा करने लगेंगी, पर घूंघट नहीं रखेंगे। अब जब कोरोना महामारी आयी तो महिलाओं ही नहीं पुरुषों को भी नाक-मुँह ढकना पड़ रहा है। न ढकोगे तो 2 हजार रुपये तक जुर्माना देना पड़ेगा। अभी सर्वेक्षण में आया है कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में कोरोना अटैक का प्रतिशत कम है। इसका एक कारण घूंघट भी हो सकता है। घूंघट से पता ही नहीं पहले बड़े बुजुर्ग घर में होते थे तो बहू की आवाज नहीं आती थी। जोर से नहीं बोलती थी। पर आज समय कितना परिवर्तित हो गया है। बहू घर में है तो बड़े बुजुर्ग को चुप बैठना पड़ता है। बड़े बुजुर्ग सोचते हैं चुपचाप बैठे रहो, कच्ची-पक्की रोटी मिल रही है, वह भी नहीं मिलेगी। समय परिवर्तनशील है। हमारी संस्कृति समाप्त होती जा रही है, मर्यादा समाप्त होती जा रही है। जैसे ही शादी फाइनल होती है भगवान को व्यक्ति भूलने लगता है। कुछ समय बाद बच्चे होते ही व्यक्ति स्वयं को भूल जाता है। जिम्मेदारी व्यक्ति पर आ जाती है। चिंता होने लगती है बच्चों का जीवन सुधर जाए, बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो जाएं, पत्नी और बच्चों की चिंता में स्वयं को भूल गए। फिर जब वृद्धावस्था आती है तब भगवान याद आते हैं। तब व्यक्ति सोचता है कि मैंने धर्म नहीं किया। और अब बुढ़ापे में धर्म होता नहीं है। शरीर साथ नहीं देता है, इसलिए थोड़ा संयम का भी ध्यान रखो। थोड़ा धर्मध्यान के लिए भी समय निकालो, गुरु सेवा से वंचित नहीं होना प्रभु की भक्ति से वंचित नहीं होना।