जब तक व्यक्ति अपने अपराध को अपराध नहीं समझेगा तब तक वह अपने आप में सुधार नहीं कर सकता – मुनि श्री प्रमाण सागर जी

इंदौर (राजेश जैन दद्दू) । केन्द्रीय जेल में केदियो को संबोधित करते हुए मुनि श्री प्रमाण सागर जी ने कहा हो सकता है यंहा पर जो बंदी है उनमें से कोई अपने आपको निरपराधी मानते हों,लेकिन वह भी यदि अपने आपको काम क्रोध लोभ और मोह से दूर रखकर अपना समय भगवान की भक्ती में लगाऐं और अपनी आत्मा को पहचानने की कोशिश करें तो वह इस कैद से छूट कर जन्म जन्म के अपराधों से भी मुक्त हो सकते है। उपरोक्त उदगार संत शिरोमणि आचार्य गुरूदेव विद्यासागर महामुनिराज के परम प्रभावक शिष्य भावनायोग के माध्यम से जन जन में परिवर्तन करने बाले मुनि श्री प्रमाणसागर महाराज ने इंदौर के केन्द्रीय जैल में शंकासमाधान करते हुये कैदियों को सम्वोधित कर व्यक्त किये।
उन्होंने कहा कि आप लोगों में से कयी कैदी और लोगों द्वारा किये गये अपराध की भी सजा भोग रहे होंगे उन लोगों को मुनि श्री ने सम्वोधित करते हुये कहा कि जो लोग अपराधी होते हुये भी बाहर है और आप यंहा पर है उनके प्रति भी क्रोध के भाव मत आने दो हमेशा यह जानना कि बुरे का अंत बुरा ही होता है। उन्होंने कहा कि आचार्य गुरूदेव हमेशा कहते है कि”जब तक तेरे पुण्य का बीता नहीं करार तब तक तुझको माफ है, अवगुण करो हजार” मुनि श्री ने कहा कि यदि आप अपने आपको सुधार करना चाहते हो तो सबसे पहले अपनी उस गल्ती को स्वीकार करो उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति के अंदर की आत्मा बहूत पवित्र होती है,लेकिन जाने अनजाने में अथवा काम क्रोध माया लोभ में आकर वह गलत रास्ता पकड़ अपराधी बन जाता है।
मुनि श्री ने कहा कि अपने अतीत को याद करने की आवश्यकता नहीं,लेकिन उस अतीत से सीख लेकर हम अपने अपराधों से मुक्त हो सकते है”मुनि श्री ने कहा कि हर संत का एक अतीक होता है और हर अपराधी का एक भविष्य होता है” में तो यह मानता हुं कि यंहा पर कोई कैदी है ही नहीं आज आप लोग हमें संत के रुप में देख रहे हो, आप लोगों में से भी यदि कोई चाहे तो वह अपने आप में परिवर्तन कर संत महात्मा के रुप में प्रकट हो सकता है। मुनि श्री ने कहा कि गल्ती करना, गल्ती को दोहराना, और गल्ती से सीख लैना, और गल्ती को सुधारना ही आप लोगों का मूल लक्ष्य होंना चाहिये पहले तो कोई गल्ती करो मत और यदि गल्ती हो गई है तो उसे दोहराने से बचो और अपनी गल्ती को स्वीकार कर उसका प्रायश्चित करो।
मुनि श्री ने कहा कि आज हम गलत करके दूसरों की आंख में तो धूल झोंक सकते है लेकिन अपने आपकी आंखो में धोखा नहीं दे सकते, आप लोग यंहा बंदी के रुप में भी रह सकते हो और अपने गुनाहों का प्रायश्चित कर एक अचछे कैदी के रुप में भी रह कर अपनी सजा कम कर सकते हो। मुनि श्री ने कहा कि कोर्ट ने जो आपको सजा दी है उस सजा को काटना तो पड़ेगा ही क्यों न अपने जीवन में परिवर्तन लाकर अपने आपको बदलने के लिये आत्मोनुखी होकर भविष्य का सुनहरा मौका मान सकते हो, यह मनुष्य जीवन बड़ी मुश्किलों से मिला है देवता भी इस मनुष्य जीवन के लिये तरसते है इसलिये आप जेल प्रशासन के साथ तालमेल बनाकर अपने जीवन में कायाकल्प करें तथा अपने आने बाले कल को उज्जवल बनाऐं यही मेरा सभी के लिये आशीर्वाद है।
इस अवसर पर जैल अधीक्षक अलका सोनकर ने भी मुनि श्री के समक्ष अपना प्रश्न रखते हुये कहा कि में भी चाहती हूं सभी कैदी अपना समय पूर्ण कर आगे अपना अच्छा भविष्य बनायें इसके लिये मुनि श्री से सम्वोधन का निवेदन किया। उपरोक्त जानकारी देते हुये धर्म समाज प्रचारक एवं प्रवक्ता अविनाश जैन ने बताया मुनि श्री ने लगभग ढेड़ घंटा का समय दिया तथा कयी कैदियों की उनकी आपबीती भी सुनी तथा उनको मार्गदर्शन भी दिया।
इस मोके पर रानी अशोक डोसी, आनंद नवीन गोधा, हर्ष जैन, इन्दर सेठी, प्रदीप बडजात्या, बाल व्रहमचारी अभय भैया आदि समाज जन भी उपस्थित रहे।

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