जब मां अंतिम सांस ले हम उसके पास हों : आचार्य विमदसागर

रतलाम । जब तुमने धरती पर पहली सांस ली थी तब मां तुम्हारे पास थी। आप भी विचार करना जब मां अंतिम सांस ले तब हम उसके पास हों। सूर्य पूर्व दिशा से निकलता है उसी प्रकार तीर्थंकर जैसे महान पुत्र को जन्म देने वाली मां लाखों करोड़ों में एक होती है। हर मां अपने बेटे के कर्तव्य को पूरा करती है। पर जब बेटे का नंबर आता है तो मुंह मोड़ लेता है। ध्यान रखना जब तक माता-पिता घर में हैं तो वह घर मंदिर है। माता पिता के बिना घर शमशान के समान है। परमात्मा में भी मां शब्द छिपा है और महात्मा में भी मां शब्द छिपा है। बच्चा सबसे पहले मां बोलता है। मां ने दूध पिलाया, खाना खिलाया, चलना सिखाया। एक मां 4 बच्चों का पालन पोषण कर सकती है, पर चार बच्चे मिलकर एक मां का पालन-पोषण नहीं सकते। एक मां 4 बच्चों को दूध पिलाती है पर चार बच्चे एक मां को पानी भी नहीं पिला सकते।
ये उपदेश रतलाम में ससंघ विराजमान श्रमणचार्य श्री विमदसागर जी मुनिराज 24 दिसम्बर को भक्तामर प्रशिक्षण शिविर के समय प्रशिक्षिओं को संबोधित करते हुए दिए। आगे उन्होंने कहा- जिसने बोलना सिखाया उसे चुप रहने को कहते हैं। तुमने बचपन में भी मां की गोदी को गीला किया और अब बड़े होकर उनकी आंखों को गीला कर रहे हो। अपने शरीर की चमड़ी निकालकर अपने माता-पिता को जूते पहना दो तो भी उनका उपकार नहीं चुका सकते। एक फ्लेट में मां तुम्हें बोझ लग रही है और मां ने 9 महीने अपने पेट में रखा तुम बोझ नहीं लगे। पत्नी पसंद से मिलती है पर मां सौभाग्य से मिलती है। मंदिर जाकर दूध चढ़ाया, पर घर पर मां पिता भूखे बैठे हैं उस पर आपका ध्यान नहीं। ऐसा धर्म धर्म नहीं है। ऐसा ना हो कि जिन माता पिता ने तुम्हारे जन्म के लिए मन्नत मांगी हो वह कहे की ऐसा पुत्र ना होता तो अच्छा था। वृक्ष पुराना फल नहीं देगा पर कम से कम छाया तो देगा। मां बूढ़ी ही सही पर आशीर्वाद तो देगी। कितना भी दान कर लो, पर माता-पिता आपके दुखी हैं तो कोई पुण्य मिलने वाला नहीं है। इस प्रशिक्षण शिविर कासंयोजन संघस्थ ब्रह्मचारिणी सरिता दीदी कर रहीं हैं।