प्रभु पूजा से प्रसन्नता तो मौन से परम शांति मिलती है- मुनिराज श्री रजतचंद्र विजयजी म. सा.

श्री मोहनखेड़ा (धार )।   श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ की पावन भूमि मे मौन एकादशी पर्व के अवसर पर सामुहिक सामयिक का आयोजन परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद्विजय ऋषभचंद्र सूरीश्वरजी महाराज साहेब की निश्रा मे आयोजित हुआ।प्रवचन के माध्यम से मालवरत्न मुनिराज श्री रजतचंद्र विजयजी महाराजा साहब ने कहां पर्व दो प्रकार के होते हैं। लौकिक एवं लोकोत्तर। लौकिक पर्व मौज मजा के लिए होता है जिससे संसार बढ़ता है । लोकोत्तर पर्व तप त्याग और संयम के साथ होता है जिसने संसार घटता है। मुनि श्री रजतचन्द्र विजय ने आगे कहा जिनशासन में लोकोत्तर पर का बहुत महत्व है। औली जी में आयंबिल तप, पौष दसमी मे अट्ठमतप दीवाली मे बेला करने का महत्व है । उसी तरह से मौन एकादशी में उपवास का मौन आराधना का डेढ़ सौ जिनेश्वर परमात्मा के जाप का बहुत महत्व है। मुनिश्री ने कहा 150 तीर्थंकर के कल्याणक होने से कोई भी तप जप धार्मिक अनुष्ठान किया गया  हो उसका डेढ़ सौ गुना फलदाई है उन्होंने श्रीकृष्ण महाराजा के जीवन में एकादशी का महत्व एवं सुव्रत सेठ के जीवन में एकादशी का जो  प्रभाव है उस पर विस्तृत प्रकाश डाला और कहां की मौन रामबाण औषधि है जैसे मास्टर की से सारे ताले खुल जाते हैं वैसे ही मौन से सारे विवाद हल हो जाते हैं। मुनिश्री ने कहा राष्ट्र एवं विश्व में शांति के लिए मौन महत्वपूर्ण सूत्र हो सकता है। मौन सर्वोत्तम है। प्रशन्नता प्रभु की पूजा से मिलती है। समता सामयिक से मिलती है वैसे ही शान्ति मौन से मिलती है ।  मुनि श्री से एक घंटा मौन रखने का नियम सैकड़ों आराधक ने लिया । सटीक एवं सारगर्भित मुनि श्री के मुखारविंद से जिनवाणी सुनकर लोक आनंदित हुए। प्रत्येक शब्दों को ध्यान से सुनते रहे।  प्रवचन एवं सामुहिक सामायिक के पश्चात सभी आराधको ने मुनिश्री को गुरु वंदन किया।  प्रभावना एवं सामायिक कराने का लाभ परम पूज्य तपस्वी मुनिराज श्री पीयूषचंद्र विजयजी महाराज साहब की प्रेरणा से भीनमाल राज निवासी  स्व श्री मति पवनी देवी अजीतमल जी दोसी परिवार मुंबई द्वारा लिया गया। प्रवचन में मुनिराज श्री जनकचंद्र विजयजी भी विराजित थे। अंत में मांगलिक सुनकर धर्मसभा का समापन हुआ।