- सागोद तीर्थ प्रतिष्ठा में परमात्मा और दीक्षार्थी का दीक्षा विधान
- 175 वर्ष प्राचीन दादा आदिनाथ बिराजेंगे नूतन देरासर में




रतलाम । भगवान महावीर स्वामी द्वारा संस्थापित जैन शासन के 2581 वें स्थापना दिवस पर मुमुक्षु धर्मेश जैन पिछोलिया ने वीरपथ पर विजय प्रस्थान किया। नूतन मुनिराज श्री भव्यचन्द्रसागर जी म.सा. के रूप में नया नामकरण हुआ। इधर बंधु बेलड़ी आचार्यश्री के करकमलों से उन्हें प्रवज्या मिली और उधर उन्होंने आगामी तीन साल तक मौन साधना का संकल्प ले लिया। सकल श्रीसंघ ने उनके सुदीर्ध संयम जीवन की कामना करते हुए अक्षत और जयकारों से वधामना किया।बंधु बेलड़ी श्रमण परिवार में यह 136 वीं और रतलाम जिले में विगत तीन वर्ष में यह पांचवी दीक्षा है ।
श्री वीसा पोरवाल जैन श्वेताम्बर तीर्थ ट्रस्ट सागोदिया ट्रस्ट द्वारा बंधु बेलड़ी आचार्य श्री प्रतिष्ठाचार्य जिन-हेमचन्द्रसागर सूरीश्वर जी म.सा, आदि ठाणा 25 की निश्रा में आयोजित सागोद तीर्थ अंजन शलाका प्रतिष्ठा महोत्सव में परमात्मा के दीक्षा कल्याणक के साथ ही धर्मेश जैन पिछोलिया का भी दीक्षा विधान हुआ। इस अवसर पर आचार्य श्री प्रसन्नचन्द्रसागर सूरिजी म.सा, आचार्य श्री विरागचन्द्रसागर सूरिजी म.सा, आचार्य श्री पदमचन्द्रसागर सूरिजी म.सा. एवं आचार्य श्री आनंदचन्द्रसागर सूरिजी म.सा, गणि श्री अजितचन्द्रसागर जी म.सा.,साध्वी श्री सौम्ययशाश्रीजी म.सा,साध्वी श्री अर्पिताश्रीजी म.सा, साध्वी श्री रश्मिताश्रीजी म.सा, साध्वी श्री समर्पिताश्रीजी म.सा एवं साध्वी श्री पंथसिद्धीश्रीजी म.सा. आदि ठाणा की निश्रा रही।
मुक्तहस्त से लुटाया सांसारिक वैभव
दीक्षा महोत्सव की शुरुआत 19 वर्षीय मुमुक्षु के वर्षीदान वरघोडे से हुई। ढोल ढमाके, बैंड बाजे और शहनाई की धुन पर दिक्षार्थी खुली बग्घी में थिरकते हुए प्रफ्फुलित मुद्रा में नृत्य करते रहे।यंहा उन्होंने सांसारिक जीवन में दैनिक उपयोग में होने वाली वस्तुओं को मुक्तहस्त से लुटाया। बग्घी में उनके संयम जीवन के उपकरण की छाप बहन गौरी और पिता अनिल कुमार सहित परिजन जयकारे लगाते हुए चल रहे थे। युवाओं की टोलियाँ झूमती नाचती चल रही थी तो महिलाएं मंगल गीत गा रही थी।
प्रवज्या पाते ही ख़ुशी से झूम उठे
सागोद रोड पर भ्रमण करता हुआ वरघोडा तीर्थ परिसर में पहुंचा। उनके दीक्षा अंगीकार करने पहुचने पर समाजजनों ने हथेलियाँ बिछा दी, जिस पर से होकर वे दीक्षा लेने पहुँचे। यंहा सर्वप्रथम बंधु बेलड़ी आचार्यश्री ने श्रीनंदी के समक्ष वासक्षेप करते हुए विधान की शुरुआत करवाई। मुमुक्षु ने करीब दो घंटे से अधिक समय तक दीक्षा विधान को पूरा किया। परिजन के साथ लाभार्थी परिवार एवं मित्रों ने उन्हें विजय तिलक किया। इसके बाद जैसे ही आचार्यश्री ने उन्हें प्रवज्या प्रदान की वे ख़ुशी से झूम उठे। उन्हें पिछले कई सालों से इस पल की प्रतीक्षा थी। समूचा तीर्थ परिसर जयघोष से गुंजायमान हो गया। इस अवसर पर मध्यप्रदेश के अतिरिक्त गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र से भी बड़ी संख्या में समाजजन रतलाम पहुचे। श्री वीसा पोरवाल जैन श्वेताम्बर तीर्थ ट्रस्ट सागोदिया ट्रस्ट द्वारा समस्त अतिथि की अगवानी करते हुए स्वागत किया गया।
आचार्यश्री ने गले लगाकर दुलार किया
नूतन मुनिराज के रूप में संयमवेश में उनके प्रथम दर्शन का पिता-बहन सहित परिजन भावुक हो गये।बंधु बेलड़ी आचार्य श्री ने गले लगाकर दुलार किया तो मुनिराज ने अपने गुरु आचार्य श्री आनंदचन्द्रसागर सूरिजी म.सा. की चरण वन्दना करते हुए आशीर्वाद लिया। नूतन मुनिराज के नूतन नामकरण के लाभार्थी विस्मय धींग परिवार, चौमहला ने मुनिराज श्री भव्यचन्द्रसागर जी म.सा. की उद्घोषणा की। इसी के साथ मुनिराज ने आगामी तीन वर्ष के लिए मौन रहकर तप आराधना करने की भावना व्यक्त की, जिसे आचार्यश्री ने तुरंत स्वीकृति प्रदान की। संयम जीवन पथ पर अगसर होते ही नूतन मुनिराज ने सर्वप्रथम दादा आदिनाथ के दर्शन वंदन किये। कार्यक्रम में शब्द संवेदना प्रवीण गुरूजी इंदौर – गणतंत्र मेहता रतलाम और शब्द संवेदना दिव्य नाहर की रही। विदाई महोत्सव की प्रस्तुति शरद जैन नवकार परिवार, इंदौर की रही।
जिनालय पर होगी ध्वजादंड – कलश प्रतिष्ठा
प्रतिष्ठा महोत्सव अंतर्गत परमात्मा की राजशाही लग्नविधि, राजतिलक, दीक्षा सहित अन्य विधान हुए। मध्यरात्रि में आचार्यश्री अंजन शलाका की विधि करेंगे। शुक्रवार को निर्वाण कल्याणक, ध्वजादंड, कलश प्रतिष्ठा,ध्वजारोहण सहित अन्य विधान होंगे। महोत्सव के अंतिम सौपन पर शनिवार को परमात्मा के जिनालय का द्वार उद्घाटन एवं सत्तरभेदी पूजन होगा।