आपका भाग्य आपका फैसला नही बदल सकता है, लेकिन आपका एक फैसला आपका भाग्य बदल सकता है – धर्म शेरनी महासाध्वी श्री धैर्य प्रभा जी म.सा.

रतलाम। श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ नीमचौक रतलाम पर जैन दिवाकर श्री चौथमल जी म.सा के अनुयायी श्रवण संघीय स्पष्ट वक्ता श्री धर्म मुनि जी म. सा. की आज्ञानुवर्तनी शिष्याएं प्रवचन प्रभाविका, धर्म शेरनी महासाध्वी श्री धैर्य प्रभा जी म.सा ठाणे-5 ने प्रवचन की शुरुआत करते हुए कहा की आप हमेशा सीधे प्रवचन सुनते है, सीधी बात सुनते है आज में आपको उल्टे प्रवचन सुनाऊँगी, उल्टी बात करूँगी, क्या आप तैयार है, सभा में से आवाज आती है जी हम तैयार है।
एक व्यक्ति एक पुस्तक की दुकान पर जाता है दुकानदार से एक पुस्तक माँगता है कि वजन कैसे बढ़ाए। दुकानदार पूरी दुकान छान देता है लेकिन उसे वो पुस्तक नही मिलती है, वो ग्राहक को मना कर देता है, लेकिन ग्राहक जिद करता है कि नही मुझे वो पुस्तक जरूरी में चाहिये एक बार फिर ढूंढने की कोशिश करो।
दुकानदार फिर कोशिश करता है और इस बार उसे सफलता मिल जाती है और वो ग्राहक को पुस्तक थमाता है। ग्राहक पुस्तक पाकर प्रसन्न हो जाता है, लेकिन क्षणभर में उसकी प्रसन्नता गुस्से में बदल जाती है और वो दुकानदार से कहता है ये क्या है, मैने आपसे वजन कैसे बढ़ाएं यह पुस्तक माँगी थी और आप मुझे वजन कैसे घटाए ये पुस्तक दे रहे हो।
दुकानदार शांति से कहता है कि मैने बहुत ढूंढी लेकिन आपकी पुस्तक मुझे नही मिली, ग्राहक कहता है यह पुस्तक मेरे किस काम की यह तो बिलकुल विपरीत है। दुकानदार ग्राहक से कहता है वही तो में आपको कह रहा हूँ आप इस पुस्तक में जो भी लिखा है उसका विपरीत करो तो वजन घटने की जगह बढ़ जाएगा और इस तरह आपका काम हो जाएगा।
एक पिता के दो पुत्र थे, एक पुत्र बिल्कुल सज्जन शरीफ, दूसरा उसके बिल्कुल विपरीत दुर्जन एवं बदमाश। एक व्यक्ति सज्जन बेटे से पूछता है तुम इतने सज्जन कैसे तो वो कहता है अपने पिता की वजह से। वही व्यक्ति बदमाश बेटे से पूछता है तुम इतने बिगड़ कैसे गए तो वो भी यही जवाब देता है कि अपने पिता की वजह से।
प्रश्न पूछने वाला व्यक्ति असमंजस में पड़ जाता है कि दोनों भाई है और दोनों कह रहे है कि जो कुछ भी हूँ अपने पिता की वजह से जबकि एक सज्जन और एक दुर्जन । ऐसा कैसे सम्भव है। वह पुनः दुर्जन से पूछता है कि अच्छा बताओ पिता की वजह से तुम कैसे बिगड़े तो वो कहता है कि मेरे पिताजी एक नम्बर के जुंवारी और शराबी थे, उनको देखकर उनकी संगत से मैं भी बिगड़ गया।
वो व्यक्ति अब सज्जन से पुछता है कि तुम बताओ तुम पिता की वजह से कैसे शरीफ बने। तो वह जवाब देता है कि मेरे पिताजी एक नम्बर के जुंवारी और शराबी थे, घर में आए दिन झगड़ा करते माँ के साथ मार पीट करते, जुवें की लत में सब कुछ बर्बाद कर दिया कभी कभी तो खाने के भी फांके पड़ जाते थे, उनकी यह दुर्गति देखकर मैने निश्चय किया कि मुझे उनके जैसा नही बनना है।
धर्म क्यों करना चाहिये, पाप ज्यादा कर लिया इसलिये धर्म करना है या मोक्ष में जाना है इसलिये धर्म करना है।धर्म यदि दवा है तो पाप परहेज है। डाक्टर जब भी दवा देता है तो वो परहेज साथ में बताता है, यदि परहेज का पालन नही किया तो दवा अपना काम नही करेगी। हाँ बल्कि यह हो सकता है कि परहेज का अच्छे से पालन कर लिया तो दवा की जरूरत ही न लगे उसके बिना ही अच्छे हो जाओ ।
धर्म कम करो या धर्म न भी करो तो चलेगा लेकिन पाप एक भी जीवन में लगा है तो मोक्ष नही मिलेगा। दान नही दोगे तो चलेगा, लेकिन किसी का हक मारोगे वो नही चलेगा । आपका भाग्य आपका फैसला नही बदल सकता है, लेकिन आपका एक फैसला आपका भाग्य बदल सकता है। धर्म पकड़ सको न पकड़ सको कोई बात नही लेकिन पाप को छोड़ने का भाव हमेशा रखों।
आपकी भाषा आपके शब्द आपके व्यक्तित्व को दर्शाते है। सबसे पहला कोई पाप छोड़ना है तो वो है गलत भाषा बोलना छोड़ दो। इंसान तीन वर्ष की उम्र में बोलना सीख जाता है, लेकिन क्या बोलना, कैसे बोलना यह सीखने में पूरी उम्र बीत जाती है। किसी के गुणगान करो या न करो लेकिन किसी के बारे में अनर्गल बाते कभी मत करो। सुनाना सबको आता है, लेकिन सुनना किसी किसी को ही आता है। कठोर भाषा बोलने वाले से तो उसके परिवार के सदस्य ही दूर हो जाते है । अतः जब भी बोलो मीठा बोलो।

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