बुजुर्गो की सेवा करने का मौका मिले तो उस मौके को हाथ से मत जाने देना – आगम ज्ञाता डॉ. समकित मुनि जी

रतलाम । नीमचौक स्थानक पर श्रवण कुमार चारित्र पर आधारीत प्रवचन माला के तीसरे दिवस पूज्य गुरुदेव आगम ज्ञाता डॉ. समकित मुनि जी ने सम्बोधित करते हुए कहा कि अगर आपको बुजुर्गो की सेवा का अवसर मिला तो ये समझो की आपको लाटरी लग गई । अगर व्यक्ति भले ही धर्म ध्यान प्रतिक्रमण, सामयिक तप त्याग नहीं करे लेकिन सच्चे तन मन धन से माता पिता की सेवा करे तो उसे देवलोक मिलना निश्चित है, भले ही उच्च देवलोक न मिले लेकिन देवलोक जरूर मिलेगा । माता पिता का उपकार चुकाना कठिनतम होता है, अपनी चमड़ी को छीलकर उसके जूते भी माँ बाप को पहना दो तो शायद उपकार नहीं चूकेगा लेकिन यदि माँ बाप के अंतिम समय को पहचान कर या डॉक्टर कह दे की अब कुछ ही दिनों के मेहमान है उस वक्त मोह को छोड़ कर उनकी अंतिम तैयारी संथारे के रूप मे करवा दे तो हम माँ बाप के कर्ज से मुक्त हो सकते है । अंतिम समय मे घर का वातावरण एसा बना दे की धर्म के अलावा कुछ भी नहीं दिखे, माता पिता की अंतिम समय में की गई सेवा बहुत फल देती है ।
श्रीकृष्ण और बलदेव ने अंतिम समय मे माता पिता की बहुत सेवा करी, उनके प्राण बचाने के लिए दोनों खुद घोड़े की जगह जुत गए, भले वो उन्हे बचा नहीं पाये, लेकिन प्रयास पूरा किया ।
एक श्रावक सुबह 11 बजे उठता था, पहली नजर मे लगेगा की लापरवाह है, लेकिन जब घर जाकर वस्तुस्थिति जानी तो पता लगा की वो रात रात भर लाचार पिता की सेवा मे जागता है, सुबह 6 बजे दूसरे घरवाले पिताजी की सेवा मे आते तब सुबह सोता है। एक श्रावक ने अपनी बीमार माँ की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ दी और उसकी पत्नी 12 वर्ष तक सास की सेवा करने के कारण अपने पीहर तक नहीं गई, ये ताजा और सच्ची घटनाए है मतलब आज भी एसे बहुत से श्रवण कुमार है इस दुनिया मे जो माता पिता को साता पंहुचाने का काम करते है । एक बहुत बड़े व्यवसायी है जिनका व्यवसाय अरबों खरबों रुपए का है लेकिन जब अपने शहर मे रहते है तब माँ बाप के पास दिन मे एक घंटा जरूर बैठते है ।
एक श्रावक का नित्य मंदिर जाने का पूजन करने का नियम था उसके बाद ही अन्न जल ग्रहण करते थे, बुढ़ापे के कारण जब चलना फिरना मुश्किल हो गया तो उनकी संतान ने उनके लिए घर मे देरासर बनवा दिया । जब भी सेवा का अवसर मिले तब उस अवसर का लाभ लेना चाहिए, सेवा करना हो तो अपने हिसाब से नहीं सेवा लेने वाले की हिसाब से करना चाहिए, क्योकि कोई भी सेवा करवाना नहीं चाहता है कोई नहीं चाहता की वो बीमार हो, लाचार हो, लेकिन एक तो वो बीमार और लाचार और आप भले ही उनकी सेवा कर रहे हो तो उन्हे गिना रहे हो की देखो मे आपकी देखभाल कर रहा हूँ बाकी कोई नहीं कर रहा है, सेवा करके कभी जताओ मत ।
कोई भी शुभ कार्य करने के पहले श्री गणेश की पुजा की जाती है गणेश को प्रथम पूज्यनीय माना गया है क्योकि 3 लोक की परिक्रमा करने का जो कार्य देवताओ को दिया गया था तो गणेश जी ने अपने माता पिता की परिक्रमा करके 3 लोक की उपमा माता पिता को दी, मतलब जिसने माता पिता की सेवा कर ली उसने तीन लोक की सेवा कर ली । जब बच्चा छोटा होता है तो हमेशा माँ बाप के इर्द गिर्द रहता है और अपने पिता को दुनिया का सबसे बड़ा बुद्धिमान समझता है, लेकिन जब वो ही बेटा जवान होता है तो अपने बुजुर्ग पिता को कहता है की आपको कुछ समझ नहीं आता है, वो अपने की पिता को मूर्ख समझने लगता है, उस वक्त वो यह भूल जाता है जिस पिता ने उसे पढ़ा लिखा कर इस काबिल बनाया की आज वो एक सफल व्यक्ति बन गया है आज उसी पिता को वो मूर्ख समझ रहा है ।
अगर जेब से रुमाल गिर जाए और कोई अजनबी उठा कर दे दे तो उसे हम धन्यवाद देते है और जिसने हमे रोटी कपड़ा मकान शिक्षा और अपना नाम दिया न जाने क्या क्या दिया उन माँ बाप को हम कभी धन्यवाद नहीं देते, ऐसे कितने ही बच्चे है जिनके माँ बाप उन्हे छोड़ कर चले जाते है, उन्हे अनाथ आश्रम मे छोड़ देते है, गर्भ मे ही खत्म कर देते है आपके माँ बाप ने आपके साथ ऐसा तो नहीं किया, कल्पना करो की यदि बचपन मे हमे इधर उधर पटक देते छोड़ देते तो हमारा क्या होता ।
श्रवण कुमार अपनी प्यासी माँ के लिए पानी लेने दौड़ता है और उधर सूरज भी सूर्यास्त की और है और इधर राजा दशरथ जंगली जानवरो से अपनी प्रजा की रक्षा के लिए अपने रथ पर सवार होकर दौड़ रहे है, श्रवण कुमार नदी के एक किनारे पर पहुच कर घड़े मे पानी भरता है, राजा दशरथ को लगता है की जंगली जानवर है नदी पर पानी पी रहा है वो शब्दभेदी बाण चला देता है और बाण सीधा श्रवण कुमार की छाती मे लगता है । श्रवण कुमार चारित्र पर आधारीत प्रवचन माला के तीसरे दिवस पूज्य गुरुदेव आगम ज्ञाता डॉक्टर समकित मुनि जी ने यह सारगर्भित प्रवचन नीमचौक स्थानक पर प्रदान किए 7 बच्चो के लिए लक्की ड्रा निकले गए कल रविवार को श्रवण कुमार चरित्र का समापन होगा, संघ पदाधिकारियों ने बच्चो और युवाओ को अधिक से अधिक संख्या मे प्रवचन मे आने का निवेदन किया है ।