सत्यार्थी……सुधीर हरबंस लाल जैन, कोटा, राजस्थान
कन्यादान का वास्तविक_अर्थ कन्यादान शब्द पर समाज में गलत फहमी पैदा हो गई है, और अकारण भ्रांतियां उत्पन्न की गयी हैं। समाज को यह समझने की जरूरत है कि कन्यादान का मतलब संपत्ति दान नही होता और… न ही ” लड़की ” का दान, ” कन्यादान ” का मतलब “गोत्र दान ” होता है.. कन्या ” पिता ” का गोत्र छोड़कर ” वर ” के गोत्र में प्रवेश करती है, पिता कन्या को अपने गोत्र से विदा करता है और उस गोत्र को अग्नि देव को दान* कर देता है… और वर अग्नि देव को साक्षी मानकर कन्या को अपना गोत्र प्रदान करता है, अपने गोत्र में स्वीकार करता है इसे ” कन्यादान कहते हैं।
कन्यादान का हमारे शास्त्रोक्त अर्थ है, कन्या अपने पिता का गोत्र त्याग कर अपना नवजीवन प्रारम्भ करती है और उससे उत्पन्न होने वाली संतान भी अपने पिता अर्थात नाना के गोत्र की नही मानी जाकर उसके पति के गोत्र की ही मानी जायेगी।
समाज मे भारतीय संस्कृति व परम्पराओ को लेकर जो भ्रांति उत्पन्न की जा है ।उसे दूर करने में अपना योगदान दे, भारतीय संस्कृति की रक्षा हेतु निरंतर वर्तमान व भावी पीढ़ी को जागरूक करते रहे ।