रतलाम । भगवान पार्श्वनाथ के जीवन में 10 अंक का बहुत महत्व है। वें 10वें देवलोक से आए, दशमी को जन्म हुआ, उनके 10 गणधर हुए, उम्र 100 वर्ष, उनके 1000 शिष्य केवली हुए, गर्भ कल्याणक दशमी को हुआ। पोष महीने में जन्म हुआ जो की दसवां महीना है। जैसे पारस पत्थर को छूते ही लोहा सोना बन जाता है, वैसे ही पारसनाथ के शरण में जाने वाली जीवात्मा भव्यात्मा बन जाती है। अभी 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी का शासन चल रहा है। लेकिन सबसे ज्यादा आराधना भगवान पार्श्वनाथ की होती है । उनका शाशनकाल मात्र 250 वर्षों का रहा, लेकिन उनके साधु साध्वी श्रावक श्राविका सबसे ज्यादा साधना करने वाले है।
सभी तीर्थंकर के एक शासन रक्षक देवता और एक शासन रक्षक देवी होती है धरणेन्द्र देव पद्मावती देवी पद्मावती देवी भगवान पार्श्वनाथ के शासन रक्षक है । लेकिन पार्श्वनाथ भगवान की 216 शासन रक्षक देवियाँ और है।
आचार्य हस्तीमल जैन मौलिक लेखन में बताया गया है की भगवान पार्श्वनाथ जब विचरण कर रहे थे तब उनके उपदेशों से प्रभावित होकर 216 वृद्ध कुमारीकाओं ने भगवान से संयम स्वीकार कर करेमी भंते का पाठ लिया। वे सभी ब्रह्मचारिणी थी उन्होंने विवाह नही किया था। 4 महाव्रतों को स्वीकार किया । पहले और चोविसवे तीर्थंकर के समय साधु के पाँच महाव्रत होते थे और दूसरे से तेईसवें तीर्थंकर के समय चार महाव्रत होते थे।
विलक्षणी साध्वी प्रमुख शिष्या बनी, सभी संयम का पालन करने लगी लेकिन धीरे धीरे शरीर से ममत्व बढऩे लगा और संयम का पालन कमजोर होने लगा, बिना संथारा संलेखना करे उन सभी का आयुष्य पूर्ण हुआ, एंव देवलोक में इंद्र की इंद्राणीया बनी, अवधिज्ञान से देखने पर पता चला की पूर्व जन्म में हम साध्वी थी लेकिन शरीर का ममत्व करने के कारण हम इंद्राणीया बनी नही तो अपने अष्ट कर्मों को खपाकर हम मोक्ष में जा सकती थी।
सभी नन्दन वन में एकत्रित होती है और अपनी गलती स्वीकार करती है एंव यह निश्चय करती है की जो कोई पार्श्वनाथ की साधना करेगा हम उसकी साधना में सहायता करेंगे, पार्श्वनाथ के भक्तों की मनोकामना पूर्ण करेंगे।
उसी समय से 216 और 1 कुल 217 शाशन रक्षक देवियाँ प्रभु पार्श्वनाथ भगवान की है।
सुबह 04 बजे से 09.30 तक भगवान आदिनाथ की साधना फलदाई होती है, दोपहर में अभिनन्दन स्वामी की आराधना करना चाहिए एंव शाम को सूर्यास्त के समय पार्श्वनाथ भगवान की आराधना करने से साधना फलित होती है।
पूज्याश्री शतावधानी गुरु कीर्तिजी मसा ने मेरे महावीर को जानों विषय को आगे बढाते हुए फरमाया कि सामंत का मंत्री विश्वभूति से कहता है की बगावत यँहा नही तेरे घर में हुई है ।
किसी भी बाहर वाले की इतनी ताकत नही है की वो तुझसे लडऩे की हिम्मत करे, बगावत करे । इसलिये बगावत तेरे बड़े पिताजी ने मतलब राजाजी ने ही की है, विश्वभूति नाराज होता है और कहता है राजाजी मुझसे बहुत स्नेह करते है, वो ऐसा कर ही नही सकते है।
मंत्री कहता है तू राजनीति समझ नही सकता है, अगर तुझे यकीन न हो तो अपने सैनिकों के साथ हमारे नगर में जाकर छानबीन कर लो, की कँही युध्द की तैयारी है, बगावत की कोई हलचल है, विश्वभूति नगर में जाता है सब तरफ शांति थी, कँही कोई बगावत की सुगबुगाहट नही मिली।
वो लौट के नगर के बाहर आता है और मंत्री से क्षमायाचना करके लौट जाता है। विश्वभूति वापस अपने राज्य की और प्रस्थान करता है, उधर विशाखानन्दी सोचता है की विश्वभूति आएगा तो उसका अपमान करूँगा, और विश्वभूति की रानियां भी सोचती है की हम विश्वभूति से अपने अपमान का बदला लेंगी। विश्वभूति महल में आता है तो उसकी रानियां उससे यह नही कहती है की विशाखानन्दी उद्यान में है। पति को पत्नि से और पत्नि को पति से कोई रॉज गुप्त नही रखना चाहिए नही तो एक न एक दिन अनर्थ निश्चित है।
प्राइवेसी देने के चक्कर में हम अपने बड़े होते हुए बच्चों पर भी निगाह नही रखते है। उनका अलग कमरा होता है जो बच्चे अंदर से बन्द कर लेते है अब बन्द कमरे में वो क्या करते है ये आप भी नही जानते है, इसलिये बच्चों को यह आदेश देवे की वो अपना कमरा अंदर से कभी बन्द न करे।
उधर विश्वभूति इन सब बातों और षडयंत्र से अंजान अपनी रानियों के संग उद्यान में जाता है, दरबान उसे उद्यान के बाहर रोक देता है की अंदर विशाखानन्दी है ।
विश्वभूति सारी बात समझ जाता है की इस कारण मुझे नगर से बाहर भेजा गया वो ये भी समझ जाता है की रानियों ने मुझसे यह बात छुपाई की विशाखानन्दी अंदर है।
विशाखानन्दी अपनी रानियों और दासियों को विश्वभूति का अपमान करने के लिए बाहर भेजता है, वो सब विश्वभूति का बहुत अपमान करती है।
विश्वभूति को बहुत अधिक क्रोध आता है, उस उद्यान में एक बहुत ही विशाल पेड़ था, विश्वभूति एक लात मारकर उस पेड़ को धराशायी कर देता है।
विश्वभूति का भयंकर क्रोध देखकर विशाखानन्दी और विश्वभूति की रानिया डर जाती है, वो सोचती है की हमने ये क्या अनर्थ कर दिया। विश्वभूति कहता है तुम मेरे परिवार के सदस्य हो और में अपने ही परिवार को नही मार सकता, लेकिन ऐसा परिवार किस काम का जो अपनों के लिए ही षडयंत्र रचे, मुझे ऐसे परिवार के साथ नही रहना है।
ऐसा कहकर विश्वभूति नंगे पैर ही वँहा से वन की और चला जाता है। जंगल में जाते वक्त विश्वभूति के मन में क्या भाव आते है उसका सामना किससे होता है ये आगे के प्रवचन में पता चलेगा।