आत्म संयम और पुरुषार्थ के प्रणेता थे स्वामी विवेकानंद

रतलाम । स्वामी विवेकानंद न केवल भारतीय आध्यात्मिक युग के प्रखर प्रणेता थे अपितु वैश्विक शांतिदूत और मानवीय जीवन मूल्यों के प्रखर प्रचारक थे उन्होंने मनुष्य को मनुष्य के साथ जोडऩे का सूत्र पूरी दुनिया में प्रसारित किया आपने मनुष्य को स्व प्रेरक आध्यात्मिक शक्ति का संचय कर मानव कल्याण के लिए उपयोग करने का आव्हान किया था । इसलिए उनके सिद्धांत आज भी सर्वव्यापी जगत प्रिय बने हुए हैं संपूर्ण विश्व उन्हें नतमस्तक होकर प्रणाम करता है उनके सिद्धांतों पर चलने का संकल्प व्यक्त करता है यह हमारी भारतीय संस्कृति और ऋषि परंपरा का श्रेष्ठतम सम्मान है
उक्त विचार स्वामी विवेकानंद जयंती के अवसर पर शिक्षा सांस्कृतिक संगठन द्वारा कॉमर्स कॉलेज स्थित उनकी यह दमकच मूर्ति पर माल्यार्पण एवं स्मरण सभा में उपस्थित शिक्षाविद शिक्षक गण साहित्यकार आदि ने व्यक्त किए ।
आरंभ में शिक्षक मंच के सभी पदाधिकारियों ने स्वामी जी को माल्यार्पण कर उनके बताए हुए मार्ग पर चलने का संकल्प लिया।  तत्पश्चात प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ मुरलीधर चांदनी वाला ने स्मरण सभा का शुभारंभ करते हुए कहा कि स्वामी जी ने सदैव आत्म संयम आत्मबल और आत्मज्ञान पर बल दिया था स्वयं को मजबूत और शक्तिशाली बनाने का वे सदैव अनुरोध करते थे उन्होंने मनुष्य को उसकी आंतरिक शक्ति और ऊर्जा को संचित करने का और उसे मानव जीवन की रक्षा में कैसे उपयोग हो इसके लिए सदैव प्रेरित किया था उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता और पवित्रता का लोहा पूरी दुनिया मानती थी स्वामी स्वामी जी ने भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं को पूरे विश्व में ख्याति दिलाई थी उनका स्मरण मात्र हमें मनुष्य होने का गर्व पूर्ण एहसास कराता है ।
संस्था अध्यक्ष दिनेश शर्मा ने कहा कि स्वामी जी इतने सालों बाद भी भारतीय जनमानस के आध्यात्मिक पूजनीय संत बने हुए हैं उनकी विचारधारा मनुष्य के प्रति प्रेम और सद्भावना की रही थी मानव का मानव के प्रति कर्तव्य बोध उनका प्रमुख उपदेश रहा आध्यात्मिक मर्यादाओं का निष्ठा पूर्ण पालन करते हुए मनुष्य के कल्याण के लिए सतत क्रियाशील रहना स्वामी जी ने ही पूरी दुनिया को सिखाया था।
डॉक्टर सुलोचना शर्मा ने कहा कि स्वामी विवेकानंद अजर अमर संत विषयों में माने जाते हैं उनके विचारों की प्रगाढ़ता और पवित्रता आज भी किसी ग्रंथ के समान है उनका स्मरण हमारी आंतरिक उर्जा को जागृत करता है
पूर्व प्राचार्य गोपाल जोशी ने कहा कि स्वामी जी हमें सदैव मर्यादित और आचरण युक्त मनुष्य होने का आभास कराते हैं मान्य परंपराओं को आधुनिकता के साथ अपनाने का उन्होंने आह्वान किया था कृष्ण चंद्र ठाकुर ने कहा कि स्वामी जी का संपूर्ण जीवन चाहे वह अत्यधिक छोटा रहा हो मानव कल्याण को समर्पित था उन्होंने मनुष्य को मनुष्य के रूप में रहना सिखाया था ।
लायंस क्लब की रीजन चेयरपर्सन वीणा छाजेड़ ने कहा कि स्वामी जी का आध्यात्मिक जीवन पूर्णता मानवीय सभ्यता और मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता था उनके बताए हुए मार्ग पर चलना सच्ची मानव सेवा का उदाहरण हो सकता है ।
श्रीमती भारती उपाध्याय ने कहा कि स्वामी जी पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के एक आदर्श संत हैं जिन्होंने दुनिया को शांति और सद्भावना से रहना सिखाया उनके आदर्श और विचारों की उच्चता आज तक पवित्र बनी हुई है श्याम सुंदर भाटी ने कहा कि स्वामी जी अपना पुरुषार्थ मानव कल्याण और आध्यात्मिक सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित रहने में उपयोग करते रहें वे ढोंगी विचारों के प्रखर विरोधी रहे मनुष्य को मनुष्य से तोडऩे का वे सदैव विरोध करते रहे । अनिल जोशी ने कहा कि हम स्वामी जी को सिर्फ एक संत के रूप में या आध्यात्मिक गुरु के रूप में देखते हैं लेकिन वह तो पूरे विश्व के महाल विचारकों में से एक थे जिन्होंने पूरी दुनिया को शांति के साथ मानव मूल्यों और मर्यादाओं के साथ जीना सिखाया था।
सचिव दिलीप वर्मा ने कहा कि हम प्ले सौभाग्यशाली है कि स्वामीजी हमारी भारत भूमि पर पैदा हुए थे भारत का गौरव उनके गौरव के साथ जुड़ा हुआ है उनके बताए हुए सिद्धांत भारतीय लोगों की आत्मा में बसे हुए हैं वह हमारे लिए सदैव सम्मानित और पूजनीय बने रहेंगे।
कविता सक्सेना ने कहा कि हम सब स्वामीजी को सदैव स्मरण करते रहेंगे उनका व्यक्तित्व शब्दों में बांधना अत्यंत कठिन है वह एक व्यक्ति नहीं अपितु युगपुरुष थे वैश्विक चरित्र थे जिनका विराट आभामंडल हम सब को सहज ही आकर्षित करता रहा है।
मनोज सक्सेना ने कहा कि हम स्वामी जी को एक संत के रूप में नहीं अपितु देवता के रूप में याद करते हैं ऐसे महापुरुष सदियों में जन्म लेते हैं आने वाली पीढ़ी को उनके विचारों से परिचित कराना हम सब का कर्तव्य है । रमेश उपाध्याय ने स्वामी जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा कि स्वामी जी के जीवन से जुड़ी हुई कई कहानियां पूरे विश्व के लिए अनुकरणीय और प्रेरक है विश्व देव मानव कल्याण और मनुष्य की हित की बात करते थे धार्मिक पाखंड में उनका विश्वास कतई नहीं था।
रमेश परमार ने कहा कि स्वामी जी को पढ़ते और पढ़ाते हुए हम छोटे से बड़े हो गए हैं परंतु उनकी विचारधारा और उनका व्यक्तित्व सदैव जीवंत लगता है वह हमारे आसपास ही महसूस होते हैं उनके सिद्धांतों को अपनाकर नई पीढ़ी को संस्कारवान बनाया जा सकता है ।
इस अवसर पर सर्वश्री ओपी मिश्रा, नरेंद्र सिंह राठौड़, राधेश्याम तोगड़े, दशरथ जोशी, मदन लाल मेहरा, रक्षा के कुमार, आरती त्रिवेदी, अंजुम खान, देवेंद्र वाघेला, नरेंद्र सिंह पंवार आदि गणमान्यजन उपस्थित थे।