नील गगन का एक सितारा ,जय गुरु जैन दिवाकर हमारा
जैन दिवाकर गुरुदेव श्री चौथमल जी महाराज सा. ने बहुत ही निर्मल और उत्कृष्ट संयम का पालन किया। कभी उन्होंने संयम में किसी प्रकार की शिथिलता नहीं रखी।
- अब हम उनके अनुयाई छोटी- छोटी बीमारी की बात करके कारों का प्रयोग लाइट,पंखे,्रष्ट,मोबाइल जूते-चप्पल का उपयोग कर रहे हैं, क्या यही हमारी गुरु भक्ति है*? चिंतन व मनन की बात है ।
उपरोक्त प्वाइंट न.1 यहां अनुयायी के स्थान पर श्रमण-श्रमणी पढ़े। मेरा ऐसा मानना है कि *साधु समा- चारी की अनुपालना श्रमण संघ के झंडे तले सभी श्रमण -श्रमणी को करना अत्यावश्यक होना चाहिए। वर्तमान स्थिति के लिए हम ही जवाब देह हैं।
2.जैन दिवाकर परंपरा में कुछ संत सती पर नाम का आक्षेप लगा कर मैसेज डाला जा रहा , जिन्हें गुरु नाम पर बहुत श्रद्धा समर्पण जैसे दृश्य दिखाकर संप्रदाय में मतभेद पैदा करने का कार्य किया जा रहा है।
उपरोक्त प्वाइंट 2 के लिए साधु समाचारी की अनुपालना* होने लगेगी तो उक्त आक्षेप स्वत: ही समाप्त हो जायेंगे। - उससे तो यह अच्छा है ,जो – जो संस्थाएं दिवाकर जी के नाम से वर्षों से बंद पड़ी है, उन्हें शुरू कर अपनी गुरु भक्ति का परिचय देवें। जैसे रतलाम में जैन दिवाकर वृद्धाश्रम जैन दिवाकर छात्रावास , पूज्य गुरुदेव श्री मोहन मुनि जी म.सा. की प्रेरणा से बना जैन दिवाकर दवाखाना , चित्तौड़ में जैन दिवाकर वृद्धाश्रम इत्यादि संस्थाएं आज किस स्थिति में है,इसका चिंतन करने की आवश्यकता है।कोटा पट्टी जो पूरी जैन दिवाकर जी के नाम से प्रसिद्ध थी* उस और भी ध्यान दोगे ?
उपरोक्त प्वाइंट न. 3. पर चिंतन और मनन के साथ कार्य भी हो।
पूर्व के पदाधिकारियों से भी पूछा जाए कि इस स्थिति तक आने के कारण क्या रहे है। रोग का मर्ज समय पर नहीं करने के ही फल हम देख रहे हैं। - संप्रदाय में सभी लोग जानते हैं कौन कितना दिवाकर भक्त है। दिवाकर जी का नाम लेकर संप्रदाय में विघटन पैदा करने का कार्य बंद कर गुरु भक्ति का परिचय दोगे तो अति उत्तम रहेगा।
यह भी चिंतन और मनन का विषय है। यहां तुलना करना उचित नहीं है। - दिवाकर जी के नाम की कई संस्थाओं का निर्माण म.प्र. आदि स्थानों पर किया गया है ,वह आज किसी से छुपा हुआ नहीं है।
101 प्रतिशत सही है। - इस वक्त संघ में मुख्यत: दो ही साधुओं का नाम आगे आ रहा है, जो जैनत्तर कुल में जन्मे और जिन शासन की बेजोड़ प्रभावना कर रहे हैं। ऐसे मुनिराजो पर संघ को स्वाभिमान होना चाहिए*।
- उक्त प्वाइंट न. 6- ऐसा लिखकर – पढ़कर दिवाकर परंपरा के अन्य श्रमण – श्रमणीयों को क्या कमतर नहीं किया गया है? और स्वयं अपनी ही कही गई प्वाइंट न. 2 की बात जोअन्य कोनहीं करना चाहिए और आप स्वयं कर गए?
मेरी उक्त विषय में असहमति बनती है। मेरे लिए सिर्फ दिवाकर परंपरा ही नहीं श्रमण संघ के सभी श्रमण – श्रमणी जी पर हमें नाज होना ही चाहिए। और कहीं कुछ शिथिलता है तो उस हेतुभी प्रयासरत होना चाहिए।सफलता या असफलता मिले वो मायने नहींरखती।
- पूज्य गुरुदेव श्री धर्म मुनि जी म. सा. को धरियावद के पास शारीरिक अस्वस्थता में खून की उल्टियां भी हुई पर उन्होंने किसी तरह का संयम में दोष नहीं लगाया उनके संयम से कुछ तो शिक्षा लेकर दिवाकर भक्ति का परिचय दो । यूं ही नहीं लोग उन्हें छोटे जैन दिवाकर जी महाराज कहते हैं। 101 टका सही।
- इस तरह आपस में नाम को लेकर अपने स्वार्थ पूर्ति हेतु गुरुदेव के नाम का दुरुपयोग करोगे तो निश्चित ही परिणाम भीषण होंगे।
इस प्वाइंट न. 8 पर चेतावनी/ धमकी जैसी बू की झलक आती है। भाषा और शब्दों का प्रयोग कहां कैसा किया जावे इसका विवेक तो होना ही चाहिए। इसी बात को अन्य तरीके से लिखा जाता तो बेहतर होता। - एक संघ हितेषी /दिवाकर भक्त श्रावक
मेरी बात से किसी की भावना आहत हुई हो तो मिच्छामि दुक्कड़म ।
परोक्त प्वाइंट न.9 पर बेनामी चिी जिसका कोई महत्व नहीं जिसके लेखक अज्ञात और उस बेनामी चिी को अ.भा. श्री जैन दिवाकर संगठन समिति के माध्यम ग्रुप के माध्यम से रखा जाना …..?
आपको निडर होकर अपने नाम से लिखना चाहिए। परिचय ही गुमनाम है उसे नाम तो दीजिए ताकि आपके अच्छे विचारों का सभी स्वागत करें। सहमति असहमति होना अलग विषय है। आप किस्मत वाले हैं कि बेनाम होकर भी संगठन समिति के ग्रुप में आपको स्थान मिला वरना……?
मुझे यह संदेश व्यक्तिगत रूप से *श्री अभय जी चोरडिय़ा पूना के माध्यम से व्यक्तिगत भी प्राप्त हुआ है। और *संगठन समिति* के माध्यम से भी संज्ञान हुआ। चूंकि संगठन समिति के पट हमारे लिए खुले नहीं है अत: उत्तर देना उचित समझ कर विभिन्न ग्रुपों के माध्यम से एक प्रयास/कोशिश।
सुरेन्द्र मारू इंदौर