जिनके रोम रोम में गुरु जैन दिवाकर समाये हुए थे बहुमुखी प्रतिभा के धनी एवम संगठन के प्रबल पक्षधर थे गुरु केवल मुनि जी

  • पुण्य स्मृति दिवस वैशाख शुक्ला दशमी पर विशेष
  • प्रस्तुति: विजय कुमार लोढ़ा निम्बाहेड़ा( बेंगलोर)

संक्षिप्त जीवन वृत
आपका जन्मसंवत 1970 की श्रावण कृष्णा त्रयोदशी को कोशीथल ( भीलवाड़ा) मे हुआ माता का नाम कंकु व पिता का नाम श्री जवाहर लाल जी कोठारी था लघुभ्राता बंशीमुनि ( जन्म नाम वक्तावर मल) थे आपका जन्म नाम प्यार चंद था। माता कंकु ने अपने दोनो पुत्रो के साथ संवत 1981 की फाल्गुन शुक्ला पंचमी को जगत वल्लभ, जैन दिवाकर गुरुदेव श्री चौथमल जी म.सा. के पास ब्यावर में भागवती दीक्षा ग्रहण की
संयम लेते ही आप अध्ययन में जुट गये व विभिन्न आगमों का अध्ययन गुरुदेव के सानिध्य में प्राप्त किया आप पर मा शारदे की असीम कृपा रही कि आप कविरत्न के नाम से प्रसिद्ध हुए आपकी प्रवचन शैली इतनी सुंदर थी तथा कंठ इतना मधुर था कि जो भी प्रवचन सुनता वापस सुनने की भावना रखता।
सन 1964 में जब अजमेर के पटेल मैदान में आचार्य श्री आंनद रिषी जी म.सा का चादर महोत्सव था तथा साधु सम्मेलन था हजारो की जन मेदनी के मध्य आपने उस प्रसंग पर गुरु जैन दिवाकर को याद करते हुए सुन्दर वक्तव्य दिया एम आचार्य श्री की महिमा का वर्णन किया उस समय ध्वनी विस्तार यंत्र का उपयोग नही था फिर भी उनकी मधुर व ओज भरी वाणी ने सबका मनमोह लिया यह नजारा मैने स्वयम विजय लोढ़ा ने देखा में बहुत छोटा था पर गुरु केवल की मधुर वाणी याद हे। दुसरे दिन भी जब प्रवचन में मालव केसरी श्री सौभाग्य मल जी म.सा व श्री केवल मुनि जी के प्रवचन हुए । संगठन व श्रमण संघ व महापुरुषो के गुणगान किये व नजारा अनुपम था।
साहित्य के क्षैत्र में गुरु केवल
आप ने उस समय साहित्य रत्न बने जब गिनेचुने सन्त वो शिक्षा प्राप्त करते थे आप का लेखन कार्य गीत कविता से प्रारंभ हुआ और एसे गीत लिखे जो आजभी सभी गुनगुनाते हैं उस समय की फिल्मी तर्जो पर सरल भाषा में लिखे गीत जिसने एकबार सुना कभी भूल नही पाता आज भी कई साधु सन्त प्रवचन के दौरान उनके लिखे गीतो को गाते हे व लोग भाव विभोर हो जाते है ।

गुरुदेव जैन दिवाकर पर लिखे उनके गीत
1 हो जिन शासन के ताज , गुरु महाराज बड़े उपकारी
2 जैन दिवाकर गुरु देव ज्योतिमान थे.
3 दिवाकर उस पार हे छाया अंधकार हे
4 दर्शन प्यासी अंखिया हे कंहा ढूंढ़े कहा जाए जैसे अमर गीतो की रचना की
और विभिन्न विषयो पर उपदेशात्मक गीत लिखे
1 पल पल बिते उमरिया मस्त जवानी जाए प्रभु गीत गाले
2 छोड़ सुंदर भवन प्यारा परिवार धन मित्र जाना पड़े
3 स्वप्न संसार हे रहना दिन चार हे मान करना नही
4 लाखो को पार लगाया हे भगवान तुम्हारी वाणी मे
5 माता पृथ्वी के नंद करे आनंद
6 डग मग डग मग नाव मजे धार हे
7 मेरे मित्रो फूट को विदा कर दिजीये अब प्रेम किजीये
8 सम्यग दर्शन , सम्यग संयम , सम्यग होवे ज्ञान उसी को मिलते है भगवान

ऐसे सेंकडो लोकप्रिय गीत उन्होने लिखे । जीवन के आखरी 15-20 वर्षों में उन्होंने कविता लिखना कम व धार्मिक कहानियो पर आधारित उपन्यासो का लिखना प्रारंभ किया लगभग 35 उपन्यास उन्होने लिखे एवम उनके द्वारा जो तत्वार्थ सूत्र की विवेचना करते हुए तत्वार्थ सूत्र सार लिखा व अपने आपमें अद्वितिय हे
संस्थाओ के लिए प्रेरणा
अपने जीवन में कइ संस्थाओं के लिए प्रेरणा दी उन संस्थाओ का नाम या तो भगवान महावीर या अपने आराध्य जैन दिवाकर गुरुदेव श्री चौथमल जी म.सा की स्मृति में रखा 0 (1) जैन दिवाकर छात्रावास नीमच । (2) जैन दिवाकर विद्या निकेतन इन्दोर( जो आज महाविधालय के रूप मे विकसित हो गया हे । (3) महावीर कालेज बेंगलोर( जो आज बैगलोर की बहुत बडी शिक्षण संस्थाओं में हे) ।
इसके अतिरिक्त अन्य कइ संस्थाए उनकी प्रेरणा से बनी आज गतिमान हे उसके अतिरिक्त उनकी मातुश्री की स्मृति मे कोशीथल में कंकु स्मृति विधालय भी गतिमान हे।
विचरण क्षैत्र
भारत के हर क्षेत्र याने पूर्व पश्चिम, उत्तर , दक्षिण में विचरण कर धर्म चेतना व सामाजिक चेतना का उपदेश दिया जहा भी विचरण किया संघ समाज में प्रेम का वातावरण निर्मित किया ।
उपाध्याय पद
सन 1985 में उपाध्याय मालव रत्न करुणा के सागर ज्योतिषाचार्य श्री कस्तुर चंद जी म.सा का देवलोक गमन होगया ! आचार्य सम्राट श्री आनन्द ऋषी जी म.सा ने आप को उपाध्याय पद प्रदान किया ! आप पद लेने के लिये बिल्कुल तैयार नही थे पर आचार्य सम्राट का आदेश व वरिष्ठ सन्तो व अ. भा. जेन दिवाकर संगठन समिती के आग्रह पर आपने पद स्वीकार किया । अप्रेल 1986 में एक विशाल समारोह में इन्दोर – मे उपाध्याय पद चादर समारोह आयोजित किया गया।
गुरु के प्रति समर्पण
यश के शिखर पर पंहूच कर भी जो भी प्राप्त किया गुरु चरणों की कृपा माना
तेरा तुजको अर्पण सदैव यह भाव रखा एसे महापुरुष जो बहु मुखी प्रतिभा के धनी थे जिनके गुणो का वर्णन करना कुछ शब्दो में सम्भव नही गुरुदेव का देवलोक गमन संवत 2051 की वेशाख शुक्ला दसमी तदानुसार 20 मइ 1994 को बेंगलोर में हुआ । पुण्यतिथि के पावन प्रसंग पर अनेकानेक वंदन ।
में भी जो थोड़ा सामाजिक कार्य कर पाया या कर रहा उस महापुरुष की प्रेरणा हे वो जंहा भी हे उनका आशीर्वाद बना रहे।
गुरु केवल के नाम लेते ही भक्तो के आंखो में आंसु
बेंगलोर जहा गुरु केवल का देवलोक गमन हुआ उनकी समाधी स्थल पर प्रत्येक अमावस्या पर गुणानुवाद व अन्न दानम का कार्यक्रम होता है ! श्रद्धालु वंहा पंहुचते है ?व गुरु के याद आते ही उनकी आंखे भर जाती हे। एसे महान गुरु उपाध्याय प्रवर की पावन पुण्यतिथी पर कोटिशः वंदन – भाव सुमन।
आप जंहा भी विराजमान हो कृपा बरसती रहे।

विजय लोढ़ा निम्बाहेड़ा ( बेंगलोर)
उपाध्यक्ष: अ. भा. श्वे. स्था. जैन कांफ्रेस नइ दिल्ली ज्ञान प्रकाश योजना
मंत्री: श्री जैन दिवाकर साहित्य प्रकाशन समिती चितौड़ गढ़( रजि.)