संकलन : सुरेन्द्र मारू
जिव्हा पर हो नाम तुम्हारा प्रभुवर ऐसी भक्ति दो।
समभावों से कष्ट सहु बस मुझमें ऐसी शक्ति दो ।
किन जन्मों में कर्म किए थे आज उदय में आए हैं ।
कष्टों का कुछ पार नहीं है मुझ पर वो मंडराएं हैं।
डिगे न मन मेरा समता से चरणों में अनुरक्ति दो।
समभावों से कष्ट सहुं बस मुझमें ऐसी शक्ति दो
कायिक दर्द भले बड़ जावे किंतु मुझ में क्षोभ न हो
रोम रोम हो पीड़ित मेरा किंचित मन में क्षोभ न हो।
दीन भाव नहीं आवे मन में ऐसी शुभ अभिव्यक्ति दो।
समभावों से कष्ट सहुं बस मुझमें ऐसी शक्ति दो ।
आर्त ध्यान नहीं आवे मन में दुःख दर्दों को पी जाऊं ।
ध्यान लगा लूं प्रभु चरणों में हंस हंस कर में जी जाऊं ।
रोने से ना कष्ट मिटे यह पावन चिंतन शक्ति दो ।
समभावों से कष्ट सहुं बस मुझमें ऐसी शक्ति दो।
महावेदना भले सतावे ध्यान तुम्हारा न छोड़ूं।
जीवन की अंतिम सांसों तक अपनी समता न छोड़ूं ।
कभी न मांगू प्रभुवर तुमसे कष्टों से मुझे मुक्ति दो।
समभावों से कष्ट सहुं बस मुझमें ऐसी शक्ति दो।
भले न तन दे साथ जरा पर मन साधन अनुरक्त रहे ।
जीवन की हर सांस तुम्हारे चरणों की ही भक्त रहे ।
रहे समाधि अविचल मेरी शांति की अभिव्यक्ति दो।
समभावों से कष्ट सहुं बस मुझमें ऐसी शक्ति दो।
समभावों से कष्ट सहुं बस मुझमें ऐसी शक्ति दो ।
मुझमें ऐसी शक्ति दो मुझमें ऐसी शक्ति दो ।