जोधपुर । शरीर के मन मंदिर में करुणा के भावों की स्थापना किए बिना कितनी ही कठोर साधना कर ले यहां तक मोह माया छोड़ कर संत भी बन जाए तो भी तीन काल में भी कल्याण संभव नहीं है उक्त विचार राष्ट्र संत कमलमुनि कमलेश ने मेवाड़ भूषण प्रताप मल जी की पुण्य स्मृति पर महावीर भवन नेहरू पार्क में धर्म सभा को संबोधित करते कहा कि करुणा ही धर्म का आधार और साधना का सच्चा प्राण है।
उन्होंने कहा कि निस्वार्थ भाव से प्राणी मात्र के प्रति करुणा के भावों से ओतप्रोत होकर समर्पित होना चार धाम की यात्रा से बढ़कर है मुनि कमलेश ने कहा कि हमारे में करुणा के भाव का निर्माण होता है तो स्वयं के अंदर से क्रूरता नफरत ईर्ष्या अहंकार सभी दुर्गुण उससे समाप्त हो जाते हैं ।राष्ट्रसंत ने स्पष्ट कहा कि विश्व के सभी धर्मों का प्रवेश द्वार ही करुणा है इसको आत्मसात करके ही महापुरुष बने हैं करुणा ही अहिंसा की जननी है । जैन संत ने बताया कि पशुओं में भी करुणा के भाव विकसित होते हैं दूसरों की रक्षा के लिए अपनी जान दांव पर लगा देते हैं वह भी विश्व पूजनीय बन जाते हैं । अखिल भारतीय जैन दिवाकर विचार मंच नई दिल्ली यह पूरे देश में करुणा दिवस के रूप में मनाया कौशल मुनि जी ने मंगलाचरण किया। अक्षत मुनि जी ने विचार व्यक्त किए।