आत्मिक सुख के लिए हमारे पास समय नहीं परन्तु फालतु कामों के लिए हमारे पर्याप्त समय है – अहिंसा तीर्थ प्रणेता राष्टसंत आचार्य श्री 108 प्रमूखसागरजी महाराज

जावरा। आचार्य श्री के मुखारबिंद से कहा कि संसार में जो सुख पहले दिखते हैं वह दुख रूप में परिवर्तित हो जाते हैं संसार की वस्तुएं हर कोई प्रारंभ में भी दुख देती हैं मध्य में भी दुख देती हैं और अंत में भी दुख देती है इसलिए हमें सांसारिक वस्तुओं से व्यक्तियों से क्रियाओं से ज्यादा आ सकती नहीं रखना चाहिए हमारा जीवन पदार्थों के लिए नहीं बना परमात्मा के लिए बनाया है । हम हमने अपने जीवन की हर श्वास को परम तत्व में लगाने का प्रयास करेंगे, सांसारिक सुख छणिक है आदमी सुख शाश्वत है हम 24 घंटे घर परिवार व्यापार संसार इक सुख होगी जहां में लगे रहते हैं। आत्मिक सुख के लिए हमारे पास 5 मिनट का भी समय नहीं है नश्वरता के लिए हमारे पास भरपूर समय है लेकिन शाश्वत पाने के लिए हमारे पास क्षणभर का भी समय नहीं है हमें अपने जीवन में जो सुख वर्तमान में दिख रहा है वे सुख शाश्वत नहीं है उस सुख के लिए हम शाश्वत सुख को ना छोड़े पंच इंद्रियों के सुख बिना 5 पाप किए नहीं उत्पन्न हो सकते लेकिन आत्मिक सुख हमें पंच इंद्रियों के व्यापार के साथ साथ अंतरंग का सुख भी दे सकते हैं इसलिए हमें बाहर की दुनिया से बाहर के जगत से अपने आप को बचाना चाहिए हम एक सुख पाने को जाते हैं वह सुख दूसरा दुख देकर चला जाता है । यह इंसान जब तक शादी नहीं करता है सुखी रहता है लेकिन वह शादी करने के बाद सोचता है कि मैं और सुखी हो जाऊं वहां सही पत्नी या पति नहीं मिला तो दुखी हो जाता है बच्चे जन्म देने के बाद सुखी हो जाऊंगा यह सोचता है बच्चे बिगड़ गए तो वह दुखी हो जाता है हम गाड़ी घोड़े खरीदते हैं सुख के लिए लेकिन वह बिगड़ जाए तो दुखी हो जाते हैं मोबाइल सुख के लिए है लेकिन उसका गलत उपयोग किया जाए तब फिर दुख में कारण बन जाता है यह सब संसार एक परिवार रिश्ते नाते सब सुख के लिए हैं लेकिन मन के विपरीत चलेंदुख उत्पन्न करते हैं आत्मिक सुख संयम वैराग दया करुणा प्रेम वात्सल्य सब आदमी सुखी इससे किसी और का कल्याण हो आपकी भावना ऐसी है आप जरूर सुखी होंगे और यह सुख कभी समाप्त होने वाला नहीं है अपेक्षित कार्य करो से रहित जीवन जियो और वासनाओं से रहित होकर साधना करो तभी जीवन की सार्थकता होगी हमारा मन अच्छा है तो गलत कार्य भी अच्छे से हो जाता है और मन खराब है तो अच्छा काम भी बिगड़ जाता है लेकिन हमें अपने मन को हमेशा अच्छा रखना चाहिए क्योंकि मन भी करते ही सारे काम बिगड़ जाते हैं और रक्षाबंधन के दिवस पर आचार्य श्री की पावन निश्रा में रक्षाबन्धन के दिन विशेष विधान के लाभार्थी पूनमचन्द राजकूमार औरा परीवार को मिलेगा। यहां जानकारी चातुर्मास समिति के प्रवक्ता रीतेश जैन ने दी।