छोटू भाई की बगीची में चार्तुमासिक प्रवचन
रतलाम, 27 सितंबर। पैसे वाले ही अमीर होते है, ऐसा नहीं है। संसार में जिसके पास संतोष है, वही सबसे बडा अमीर होता है। संतोष सन्मति का ऐसा गुण है, जो जीवन में आ जाए, तो आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर देता है। आप पैसे वालों को मत देखों, यदि आप संतुष्ट है, तो अपने आप को सबसे बडा अमीर मानिए।
यह बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। छोटू भाई की बगीची में चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान सन्मति के गुणों का विवेचन करते हुए उन्होंने कहा कि जिसके अंदर संतोष होता है, वह अमीर होता है। इसी प्रकार जिसके अंदर शांति है, वह सबसे बडा सुखी है और जिसके अंदर दया है, वह सबसे अच्छा इंसान होता है। संतोष हमे सबसे अमीर बनाता है। शांति सुखी बनाती है और दया सबसे अच्छा इंसान बनाती है, इसलिए सबको इनका अनुसरण करना चाहिए। इससे मनुष्य जन्म सार्थक हो जाएगा।
आचार्यश्री ने कहा कि जीवन को अच्छा बनाने के लिए साधनों की नहीं साधना की जरूरत होती है। भवनों से अधिक भावना का महत्व है। जीवन को बातें नहीं, आचरण श्रेष्ठ बनाता है। इसलिए साधनों, भवनों और बातों पर अधिक ध्यान नहीं दे और साधना, भावना एवं आचरण के अनुगामी बनकर रहे।
आरंभ में उपाध्याय प्रवर श्री जितेशमुनि जी मसा ने आचारंग सूत्र का वाचन किया। उन्होंने कहा चैरासी योनियों में मनुष्य योनी सर्वश्रेष्ठ है। इसमें हमे अंतरावलोकन करना चाहिए। यदि अपने अंदर कोई कमी हो, तो उसे दूर करके जीवन का कल्याण करे। इस मौके पर राजनांदगांव से आई नन्हीं बालिका खुशिका जैन ने भाव व्यक्त किए। आचार्यश्री से महासती श्री इंदुप्रभाजी मसा ने 9 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। अन्य तपस्वियों ने भी प्रत्याख्यान ग्रहण किए। इस दौरान बडी संख्या मंे श्रावक-श्राविकागण उपस्थित रहे।