महापुरूष कभी अतीत नहीं होते, व्यक्तित्व से वर्तमान और कृतित्व से भविष्य होते है-आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा
रतलाम,31 अक्टूबर। परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा की निश्रा में मंगलवार को आचार्यश्री नानेश का 24 वां पुण्य स्मृति दिवस तप, त्याग पूर्वक मनाया गया। आचार्यश्री नानेश का गुणानुवाद करते हुए आचार्य प्रवर ने कहा कि महापुरूष कभी अतीत नहीं होते, अपने व्यक्तित्व से वे वर्तमान और कृतित्व से हमेशा भविष्य होते है। आचार्यश्री नानेश का गुणानुवाद कर स्मरण करना हमारा सौभाग्य है।
आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा ने बताया कि आचार्यश्री नानेश का जन्म दाता में, दीक्षा कपासन में और आचार्य पद उदयपुर में हुआ था। उनका स्वर्गारोहण भी उदयपुर में हुआ। उनका जीवन ध्रुव तारे के समान थे, जो कभी अस्त नहीं होता और हमेशा आसमान में चमकता रहता है। उनके दिव्य और भव्य जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। मिश्री कोई खाता है, तो जैसे वह सब तरफ से मीठी लगती है, वैसे ही आचार्यश्री नानेश का जीवन मधुरता से ओतप्रोत रहा। उनका स्मरण करने से हमारा जीवन आस्था और आत्मीयता से ओतप्रोत हो जाता है।
आचार्य प्रवर ने कहा कि नाना गुरू विचार प्रधान ही नहीं, अपितु सुंदर आचारों के पुरौधा भी थे। धर्मपाल प्रतिबोधक के रूप में उन्होंने असंख्य लोगों को धर्म की राह दिखाई है। उनका नाम सदियों-सदियों तक ऐसे ही लिया जाता रहेगा। उनके आशीर्वाद से गुरू भक्त अपने जीवन में सदैव आगे बढते रहेंगे। आरंभ में उपाध्याय प्रवर श्री जितेश मनिजी मसा ने भी गुणानुवाद किया। उन्होंने कहा कि आचार्यश्री नानेश ने समाज को तप, त्याग, संयम से आत्म कल्याण का ऐसा मार्ग दिखाया है, जिससे हर व्यक्ति लाभान्वित हो सकता है। उनके बताए हुए मार्ग पर चलना ही उनका सही अर्थों में गुणानुवाद है। सभा में अन्य वक्ताओं ने भी भाव व्यक्त किए। संचालन हर्षित कांठेड ने किया। इस दौरान बडी संख्या मंे श्रावक-श्राविकागण उपस्थित रहे।