बदलती अर्थव्यवस्था और जनसंख्या असंतुलन

अशोक मेहता
(लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्), इंदौर

मुख्यतः शहरों से लगे गाव अमीरो से और शहर मिडलक्लास व गरीबो से भर रहे । प्रॉपर्टी के इस दौर में बहुत सारे बदलाव आये जमीनो की किमते सोने चांदी जवाहरात से बढ़कर हो गई क्योकी बढ़ती आबादी के कारण शहरीकरण का विस्तार होने से आसपास के गांव की जमीनों की मांग बड गई और जमीनो की किमतो मे उछाल आ गया। गांव में रहने वाले जमीन मालिक जमीन बिक्री से अमीर हो गए। शहर से लगे अनेक गांवों में आप पाएंगे गांव वालों ने अपने शानदार अलीशान मकान बनाये। परंतु शहरों में रोजगार की तलाश में गांव से पलायन कर कई परिवारो के कारण शहरो मे झुग्गी झोपड़ियां की बस्तीया बढ़ती जा रही जिससे शहरो की आबादी मिडिल क्लास और गरीबों से भर रही है।
मुझे ऐसा लगता है शायद यदी सरकार गांव वालों की गांव में ही रोजगार देने में या उन्हें कुछ अपने स्वयं के उत्पादन बढ़ाने और उन्हें बिक्री करने में मददगार होती, खेती किसानी में युवाओं को प्रोत्साहित करती , गांवो में शिक्षा मेडिकल और आवागमन की समुचित व्यवस्था रखती तो शायद आबादी का इधर से उधर होना रुक जाता या कम हो जाता और गांव और शहरों का जनसंख्या संतुलन बना रहता।