आस निरास हुई – कविता

लेखक – प्रो.डी.के.शर्मा
47, राजपूत बोर्डिंग कॉलोनी, रतलाम मो. 7999499980

बहुत सारे सपने संजोएं होंगे सब ने
आजादी मिलेगी तो सब ठीक होगा।
न सोचा होगा किसी ने तब यह
चारों तरफ केवल भ्रष्टाचार होगा।
न मिटेगी ईमानदार की मुसीबत
ना ही ईमानदारी से व्यापार होगा।
शिक्षा में होगा भ्रष्टाचार भारी
केवल कुछ का उद्धार होगा।
ना होगा कोई सुरक्षित
लड़कियों का व्यापार होगा।
इंसान खाएगा गाय का चारा
नदी के पुलों का बंटाधार होगा।
बईमानों की मंजिलें बड़ी-बड़ी होंगीं
गरीबों का मुश्किल से उद्धार होगा।
साधु-संत भी बनेंगे अरबपति
धर्म भी अच्छा व्यापार होगा।
महिलाएं बेचेंगी अपनी इज्जत
पुरूष का पुरूष से ब्याह होगा।
धर्म रक्षक बनेंगे भक्षक
सुचिता से किसी का न सरोकार होगा।
खा-खाकर मुफ्त का अनाज
देश का युवा बेकार होगा।
बिना पढ़ा राज करेगा सब पर
पढ़ा-लिखा देश में बेकार होगा।
मिलेगी नौकरी सिफारिश से केवल
या इसमें भारी भ्रष्टाचार होगा।
मारे जाएंगे ईमानदार -सच्चे
बईमानों का सरेआम सत्कार होगा।
ईमानदारी से न होगी परीक्षा
नकल करना-कराना
अच्छा व्यवसाय होगा।
ईमानदार बच्चे मारे – मारे फिरेंगे
बेईमान कुर्सी पर सवार होगा।
आरक्षण की आंधी ऐसी चलेगी
सवर्ण होना अपराध होगा।
प्रजातंत्र का अर्थ है सब में समानता
पर यह भी बहुमत का अत्याचार होगा।
पत्थर ईटों के बुत सब बने हैं
प्रेम मोहब्बत सपने हो गए हैं
द्वेष-ईर्ष्या गलकट प्रतियोगिता
सर्वनाश सौहार्द का हो गया है।
परिवार बिखरे-बिखरे हुए हैं
सास-ससुर दुश्मन से लगते
क्यों भूल जाते हो यह हकीकत
एक दिन तुम भी सास-ससुर बनोगे।
तुम्हारे बच्चे करेंगे तिरस्कृत
तब पश्चात से तुम जलोगे।
कितना भी लिखे कम है यारों
क्या कभी इसमें सुधार होगा?