देश चलाने के लिए जैसे संविधान जरूरी, वैसे ही जिनशासन के लिए आचारांग सूत्र है- आचार्य देव श्री नयचंद्रसागर सुरीश्वर जी म.सा.

रतलाम, 23 जुलाई। चातुर्मास के पावन अवसर पर सैलाना वालों की हवेली मोहन टॉकीज में चल रही प्रवचन श्रृंखला के बीच मंगलवार से आचारांग सूत्र पर प्रवचन आरंभ हुए। वर्धमान तपोनिधि पूज्य आचार्य देव श्री नयचंद्रसागर सुरीश्वर जी म.सा. ने आचारांग सूत्र को परिभाषित किया। इस अवसर पर आचारांग सूत्र की पूजा अर्चना की गई।
आचार्य श्री ने कहा कि जिस दिन परमात्मा का केवल ज्ञान होता है, उस दिन द्वादशांगी की रचना होती है। परमात्मा पहले और चौथे पहर में देशना देते हैं। जिस तरह से देश को चलाने के लिए संविधान की आवश्यकता होती है, ठीक वैसे ही जिनशासन को चलाने के लिए आचारांग सूत्र की रचना की गई है। आचारांग में श्रवण के आचार और गर्त के सदाचार की आवश्यकता है। आचार से ही आत्मा की शुद्धि होती है। यह अनंत काल से स्थाई रूपी है। हमें सबसे पहले आचार की शुद्धि करना चाहिए और उसे क्रिया में डालना चाहिए। आचारांग सूत्र से आचरण, आचरण से निर्वाण और निर्वाण से अभ्यभास की प्राप्ति होती है। श्री देवसुर तपागच्छ चारथुई जैन श्री संघ गुजराती उपाश्रय रतलाम एवं श्री ऋषभदेव जी केसरीमल जी जैन श्वेतांबर पेढ़ी रतलाम के तत्वावधान में आयोजित प्रवचन श्रृंखला में बड़ी संख्या में श्रावक, श्राविकाएं उपस्थित रहे।