कर्मों की होली जला कर आत्मा की दीवाली मानना है एवं जीवन की झोली को भरना है- पूज्याश्री कल्पदर्शनाजी म.सा.

रतलाम 24 जुलाई । जिनशासन चंद्रिका, मालव गौरव पूज्याश्री प्रियदर्शनाजी म.सा. (बेरछावाले) एवं तत्वचिन्तिका पूज्याश्री कल्पदर्शनाजी म.सा. ने श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ नीमचौक स्थानक पर चातुर्मासिक सभा को सम्बोधित करते हुए अपने प्रवचन में कहा कि कर्मों की होली जला कर आत्मा की दीवाली मानना है एवं जीवन की झोली को भरना है।
जिनवाणी सुनने से कल्याण का मार्ग पता चलता है जिनवाणी सुनने से ही पाप के मार्ग का पता चलता है, दोनों मार्गों के बारे में सुनकर समझकर जो मार्ग जीवन के लिए श्रेष्ठ लगे उसे जीवन में उतार लो। प्रभु महावीर ने जगत के कल्याण के लिए सबको यह श्रेष्ठ मार्ग बताया है आपके पास अगर कोई कला है तो आप इतनी आसानी से दूसरों को बताते नहीं है क्योंकि आपको लगता है की दूसरा आपसे श्रेष्ठ हो जाएगा लेकिन प्रभु महावीर ने जिस मार्ग पर चलकर मोक्ष मार्ग को प्राप्त किया उन्होंने वही मार्ग जगत को बताया ।
कितने दयानिधान करुणा के भंडार है हमारे प्रभु महावीर । तीर्थंकर जब दीक्षित होते हैं तो उनके कोई गुरु नहीं होते हैं तीर्थंकर जन्म से ही तीन ज्ञान के धारक होते हैं । तीर्थंकर भगवान केवल ज्ञान प्राप्त होने के पश्चात तीर्थ की स्थापना करते हैं जिसमें साधु साध्वी श्रावक श्राविका होते हैं यह जीवित तीर्थ होते हैं, चैतन्य तीरथ होते हैं ।
जिस व्यक्ति का जीवन तीर्थ के समान पवित्र है वह स्वयं का कल्याण करता है वह जगत का भी कल्याण करता है, अपने जीवन को निष्पाप बनता है वही श्रावक कहलाता है । सरलता, विनय, देव गुरु धर्म के प्रति आस्था जिसके मन में होती है वही तीर्थ का हिस्सा हो सकता है जिसकी प्रेरणा से व्यक्ति धर्म के क्षेत्र में आगे बढ़ता है ऐसे भाग्यशाली प्रेरणा देने वाले व्यक्ति को श्रावक कहते हैं । आत्मा में कोई भेद नहीं होता है भेद सिर्फ पुरुषार्थ का होता है आत्मा में अनंत शक्ति है अनंत काल से मोह निद्रा में सोई हुई आत्मा को जागृत करने वाली जिनवाणी है ।
आत्मा एक ऐसा सिंह है जिसके आसपास उसको भटकाने के लिए क्रोध मान माया लोभ का आवरण होता है, जिनवाणी सिंहनी के समान है जो कोई आत्मा को जगाने काम करती है । कर्मों की होली जला कर आत्मा की दीवाली मानना है एवं जीवन की झोली को भरना है।
नश्वर चीजों से तो आपने अपनी जीवन की झोली भर ली लेकिन अब कर्मों की होली जलाकर आत्मा की दीवाली मनाना है । संसार सपना है यहां कोई ना अपना है देख चलो, समझ चलो यहां पग पग पर धोखा है। कब तक सबको अपना मान कर पूरे संसार की गुलामी करते रहोगे तो आत्मा साधना कब करोगे, आप कहते हो कि अभी फुर्सत नहीं है, आपसे ज्यादा फुर्सत तो बंदर के पास है तो क्या वह आत्म साधना करता है। मानव जीवन मिला है इसे व्यर्थ नहीं करवाना है आत्म साधना के मार्ग के मार्ग पर चलकर जन्म मरण से मुक्ति पाना है।