भगवान नेमिनाथ का जन्म कल्याणक व दीक्षा कल्याणक रिमझिम बारिश के दौरान हर्षोल्लास के साथ मनाया

रतलाम 9 अगस्त । सौ.वृ.त. श्री राजेंद्र सूरि त्रिस्तुतिक जैन श्वेतांबर श्री संघ एवं चातुर्मास समिति द्वारा नीम वाला उपाश्रय खेरादी वास में रतलाम नंदन प. पू .श्री 1008 जैन मंदिर के प्रेरणादाता, राष्ट्र संत कोकण केसरी गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद् विजय लेखेन्द्र सुरिश्वर जी म.सा. की आज्ञानुवर्ती एवं मालवमणि पूज्य साध्वी जी श्री स्वयं प्रभाश्री जी म.सा. की सुशिष्य रतलाम कुल दीपिका शासन ज्योति साध्वी जी श्री अनंत गुणा श्रीजी म.सा,श्री अक्षयगुणा श्रीजी म.सा. श्री समकित गुणा श्री जी म.सा. श्री भावित गुणा श्री जी म.सा. उपासना में विराजे हैं जिनका चातुर्मास में नित्य प्रवचन चल रहे हैं कल प्रवचन सुबह 9:30 बजे रहेगा। आज शुक्रवार को नेमिनाथ भगवान का जन्मोत्सव धूमधाम के साथ मनाया गया तथा भगवान के जीवन परिचय का नाट्य रूपांतरण किया गया।इसमें 14 सपनों के दर्शन कराए गए पश्चात भगवान नेमिनाथ के जीवन चरित्र को वर्णित किया।भगवान नेमिनाथ जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर थे। उनका जन्म आज से लगभग 8,000 वर्ष पूर्व यदुवंश में हुआ था। नेमिनाथ का जन्म स्थान वर्तमान गुजरात के द्वारका में स्थित शौरिपुर (श्रीपुर) है। उनके पिता का नाम राजा समुद्रविजय और माता का नाम रानी शिवादेवी था। भगवान नेमिनाथ का जन्म कार्तिक कृष्ण एकादशी के दिन हुआ था।
नेमिनाथ का जीवन
नेमिनाथ जी का बचपन राजसी वैभव में बीता। वे बल, विद्या, और गुणों से सम्पन्न थे। उन्हें पशु-पक्षियों से अत्यधिक प्रेम था, और वे सदा दूसरों की भलाई के लिए तत्पर रहते थे। युवा अवस्था में ही उनका विवाह राजकुमारी राजुला के साथ तय हुआ था। किंतु, विवाह के दौरान नेमिनाथ जी ने देखा कि उनकी शादी के लिए बड़ी संख्या में पशुओं को मारने की तैयारी हो रही है। इस दृश्य से उन्हें गहरा आघात पहुँचा, और उन्होंने विवाह का परित्याग कर दिया।
इसके बाद नेमिनाथ जी ने सांसारिक जीवन से विरक्त होकर संन्यास ले लिया और वन में जाकर कठोर तपस्या में लीन हो गए। कठिन तपस्या के बाद उन्हें कैवल्य ज्ञान (मोक्ष) की प्राप्ति हुई और वे तीर्थंकर बने।
नेमिनाथ जी के उपदेश
नेमिनाथ जी ने अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, और अपरिग्रह के सिद्धांतों पर जोर दिया। उनके उपदेशों का मुख्य उद्देश्य जीवों की रक्षा, संसार के दुखों से मुक्ति, और आत्मा की शुद्धि था। भगवान नेमिनाथ ने अपने जीवनकाल में अनगिनत लोगों को धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी और उन्हें मोक्ष का मार्ग दिखाया। अंत में, वे गिरनार पर्वत पर जाकर निर्वाण प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त हुए।
नेमिनाथ जी का जीवन अहिंसा और करुणा के प्रति समर्पित था, और उनके उपदेश आज भी जैन धर्म के लिए मार्गदर्शक हैं। सौ. वृ.त. त्रीस्तुतिक जैन श्री संघ एवं राज अनंत चातुर्मास समिति, रतलाम के तत्वाधान में बड़ी संख्या में श्रावक एवं श्राविकाए उपस्थित थी।