केवल अपने आप को महत्वपूर्ण समझ कर मैं मैं करने वाला कभी भी सम्मान नही पाता है – मालव गौरव पूज्याश्री प्रियदर्शनाजी म.सा.

रतलाम 09 अगस्त । जिनशासन चंद्रिका, मालव गौरव पूज्याश्री प्रियदर्शनाजी म.सा. (बेरछावाले) एवं तत्वचिन्तिका पूज्याश्री कल्पदर्शनाजी म.सा. ने श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ नीमचौक पर अपने प्रवचन में कहा कि संत न बन सको कोई बात नही सज्जन जरूर बनना । वरना मानव होकर भी दानव की गिनती में आ जाओगे ।
एक शब्द का वशीकरण मंत्र: हम – जीवन बी (बर्थ) से शुरु होकर डी (डेथ) पर खत्म हो जाता है बीच का जो सी (चाईस) है वो आपकी है की आपको अपना जीवन कैसा बनाना है । घर-परिवार, संस्था-समाज के भीतर जंहा तक हो सके मैं शब्द के प्रयोग से बचे ।
क्योंकि कोई तन से कोई मन से और कोई धन से सहयोग करता है, हर जगह केवल अपने आप को महत्वपूर्ण समझ कर मैं मैं करने वाला कभी भी सम्मान नही पाता है । बकरा भी हमेशा मैं मैं करता रहता है और उसका अंत क्या होता है यह सभी भली भाँती जानते है ।
इसलिए जब तक हो सके मैं की जगह हम का उपयोग करना चाहिए । सबको साथ मैं लेकर चलने वाले का हर जगह मान सम्मान और पूछ परख होती है और उसे लगातार अवसर मिलते है । 9 पुण्य मैं से एक महत्वपूर्ण पुण्य है वचन पुण्य, भाषा का सोच समझकर सही उपयोग करने से शुभ कर्मों का उपार्जन होता है ।
18 पापों में से 11 पाप वाणी के दुरूपयोग से हो जाते है । केवल मानव की ही विशेषता है की वो मानव जन्म लेकर मानवता की शान बन सकता है, दानव जैसा व्यवहार कर सकता है, पशुत्व जैसा व्यवहार कर सकता है और देवत्व जैसा व्यवहार कर सकता है, ये जो मानव जन्म मिला है उसमें मानवता और देवत्व के गुण लाकर जीवन को सार्थक एवं यादगार बनना है जितने भी महापुरुष हुए है वो पहले साधारण मानव ही थे उन्होंने अपनी कथनी और करनी से महापुरुष, और भक्तों के भगवान का पद प्राप्त किया है ।