इंदौर में आचार्य पदवी महोत्सव के लिए गणिवर्यश्री का विहार
रतलाम 8 जनवरी । जैन श्रमण संघीय परंपरा में प्रतिष्ठित सागर समुदाय का रतलाम से 150 वर्षो का संबंध रहा है। इसी समुदाय में अयोध्यापुरम-सुमेरु नवकार तीर्थ प्रेरक आचार्य श्री बंधु बेलड़ी श्रमण परिवार में रतलाम से गणिवर्य श्री पद्मचन्द्रसागरजी म.सा. एवं गणिवर्य श्री आनंदचन्द्रसागरजी म.सा. को आचार्य पदवी का पावन प्रसंग स्वर्णिम अध्याय के रूप में अंकित होगा। 36 दिनी महोत्सव अंतर्गत 7 फरवरी को इंदौर में बंधु बेलड़ी पू.आचार्य श्री जिन-हेमचन्द्रसागरसूरीश्वर जी म.सा.की निश्रा में आयोजित है।
यह विचार पू.आ.श्री प्रसन्नचन्द्रसागर सूरीश्वर जी म.सा. ने श्री करमचंद उपाश्रय में विशेष व्याख्यान में व्यक्त किये। यंहा पदवी प्राप्त करने जा रहे गणिवर्य श्री पद्मचन्द्रसागरजी म.सा. आदि ठाणा की निश्रा रही। देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ एवं ऋषभदेवजी केसरीमलजी जैन श्वेताम्बर पेढ़ी द्वारा श्रीसंघ को आचार्य पदवी महोत्सव में आमंत्रित किया गया।
चतुर्विद श्रीसंघ के लिए गौरव का प्रसंग
आचार्यश्री ने कहा कि धर्मस्व नगरी रतलाम का सागर समुदाय 150 वर्षो का गौरवपूर्ण इतिहास तप आराधना और जिन शासन सेवा को समर्पित रहा है। इस पावन माटी ने जैन धर्म को कई रत्न दिए है। बच्चों से लेकर बड़े तक कई संयमी आत्माओं ने भगवान महावीर का वीतराग पथ स्वीकार किया है। इसी रतलाम के आचार्य श्री बंधु बेलड़ी शिष्यरत्न गणिवर्य श्री पद्म-आनंदचन्द्रसागरजी म.सा. अब आचार्य पदवी को सुशोभित करने जा रहे है। यह सम्पूर्ण चतुर्विद श्रीसंघ के लिए गौरव का प्रसंग है। गणिवर्यश्री ने 70 एवं 80 के दशक में रतलाम के गुजराती उपाश्रय में प्रतिक्रमण, पौषध सहित विभिन्न तप आराधनाएँ की थी। जो आज इस प्रसंग पर प्रेरक बन जाती है।
आचार्य पद व्यक्ति पर केन्द्रित नहीं
गणिवर्यश्री ने कहा कि रतलाम धर्म आराधना के क्षेत्र में सदैव समर्पित रहा है। आचार्य पद किसी व्यक्ति विशेष पर केन्द्रित नहीं बल्कि सम्पूर्ण जैन धर्म की परम्परा में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यंहा विश्वास की कसौटी पर सौ टका खरा उतरने की साधना होती है। देव और गुरु के आशीर्वाद से श्रीसंघ द्वारा यह दायित्व सौपा जाता है। महावीर स्वामी के बताये मार्ग पर अनुगामी होते हुए धर्म और संस्कृति की सेवा ही मुख्य लक्ष्य होता है। गणिवर्यश्री ने मंगलवार शाम रतलाम से इंदौर के लिए विहार किया।