भक्तों के भगवान थे श्रीहेमेन्द्र सूरीश्वरजी-मुनि चंद्रयश विजय

श्री पार्श्वनाथ-राजेन्द्र धाम श्री हेमेन्द्र सूरिजी की दशम पूण्य तिथि का हुआ आयोजन

नाकोड़ा जी (बालोतरा)। जिह्वा पर गुणानुवाद, आंखों में अश्रुधार, हृदय में गर्व तथा गगनभेदी जयकारों के साथ श्री नाकोड़ा तीर्थ स्थित श्री पार्श्वनाथ- राजेन्द्र धाम तीर्थ में…. शासन प्रभावक वचनसिद्ध, त्रिस्तुतिक संघ दिवाकर, राष्ट्रसंत शिरोमणी, जैनाचार्य श्रीमद विजय हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की दशम पुण्य तिथी निमित्त श्री हेमेन्द्र सूरि पूजा एवं गुणानुवाद का आयोजन किया गया ।
सभा का शुभारंभ मुनिश्री चंद्रयश विजयजी द्वारा मंगलाचरण के माध्यम से हुआ तत्पश्चात आचार्य श्री की मूर्ति पर माल्यार्पण व दीप प्रज्वलन ट्रस्ट के ट्रस्टी श्री सायरमल जी नाहर, बलवंत मेहता आदि ने किया । इस बीच गुरुपूजा का लाभ श्री राज हर्ष हेमेन्द्र ट्रस्ट की ओर से लिया गया । सभा में कई श्रद्धालुओं ने भाग लिया व कतारबद्ध होकर गुरुदेव की प्रतिमा पर वासक्षेप द्वारा पूजा की।
किसने क्या कहा
गुणानुवाद सभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री चंद्रयश विजयजी ने कहा-पू आचार्य श्री ने भारत भर के 8 राज्यों में पदयात्रा कर धर्म की ज्योत जलाई थी उन्होंने अहिंसा का संदेश घर-घर पहुंचाया था उनके द्वारा किए गए धार्मिक मानव सेवा एवं शिक्षा के कार्य युगों युगों तक उनकी स्मृति दिलाते रहेंगे उन्होंने तप-जप के द्वारा अपनी आत्मा को पवित्र बनाया था वे गुरुदेव श्री राजेंद्र सूरी जी महाराज साहब की पाट गादी के सच्चे-सुदृढ संवाहक थे ।
मुनि श्री ने आगे कहा- आचार्य श्री ने सरलता पवित्रता तथा कुशलता के आदर्श स्थापित कर जनमानस को सच्ची राह पर चलने के लिए सदा प्रेरित किया था । उन्होंने धर्म जागरण तथा आत्म उन्नति के शुभ उद्देश्य से भारत भर में अनेक मंदिरों की स्थापना के साथ ही भीनमाल के 72 जिनालय की सद्प्रेरणा दे निर्माण कराकर जालौर जिले का नाम गौरवान्वित किया उन्होंने मानव सेवा, जन कल्याण के लिए चिकित्सालय,विद्यालय, पशु प्रेम से गौशालाओं की शुभ प्रेरणा देकर निर्माण करवाएं । वे सर्वधर्म जाति के समन्वयक थे उनका सौजन्य पूर्ण व्यवहार सभी को आकर्षित करता आचार्य श्री ने जैनागमों का गूढ़ अध्ययन किया था तथा वे ज्योतिष के महान विद्वान थे । उन्होंने आचार्य श्री के सरलता,सूक्ष्म चारीत्र पालक,वचनसिद्धता,महामांगलिक प्रदाता एवम निराभिमानता इन पांच गुणों पर भी विस्तार पूर्वक वयवहार व्यक्त किये।
मुनिश्री वैराग्ययश विजयजी ने कहा-आचार्य श्री तपस्वी सम्राट थे उन्होंने अनेकानेक मंदिरों की प्रतिष्ठा, सेंकडो दीक्षा, छरी पालक संघ,जिनालयों के जीर्णोद्धार करवाकर त्रिस्तुतिक संघ की महत्ती प्रभावना की थी है। उन्होंने अपने सहवर्ती मुनिवरो के साथ विचरण कर गांव-गांव नगर- नगर जैन धर्म का ध्वज लहराया था ।
मुनि श्री विरल विजय जी ने कहा- गुरु का स्थान भारतीय संस्कृति में सबसे ऊंचा है , आचार्य श्री सरलता की प्रतिमूर्ति थे अपनी क्रिया में जिस तरह सजग रहकर प्रतिदिन नवकार महामंत्र एवं शंखेश्वर पाश्र्वनाथ प्रभु की माला जाप कर ही जल ग्रहण करते थे ।
सभा के मध्य में गुरुदेव को वंदन किया गया एवं गुरु हेमेन्द्र सूरि अष्ट प्रकारी पूजा का आयोजन हुआ जिसके तहत उपस्थित श्रद्धालुओं ने जल,चंदन,पुष्प,धूप,दिप,अक्षत,नैवेद्य और फल द्वारा पूजा की तथा गुरु मूर्ति का अभिषेक भी किया अंत में पुष्पवृष्टि कर गुरु हेमेन्द्रसूरीश्वरजी की आरती उतारी गई ।
कार्यक्रम के तहत गुरुदेव को श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए, साथ ही पुण्यतिथि निमित्त आयंबिल, जाप, जीवदया मानव सेवा आदि के विविध आयोजन किए गए ।
इस अवसर पर कार्यक्रम में सायरमल नाहर, बलवंत मेहता, सुमेरमल गोठी, धर्मेश चोपड़ा, महेंद्र जैन, कांतिलाल नाहटा, कमलेश रांका, जवेरीलाल मेहता, बसंत जैन, रमेश, राजू सिंह, जोरावर सिंग,पंकज सिंह, विक्रम सिंह, भीमा देवासी आदि श्रद्धालु उपस्थित थे ।