- सफलता के साथ संतुष्टि को जोड़ा अन्यथा कितना भी मिल जाए नहीं मिलेगी खुशी
- बेस्ट बनो पर यह मत कहो मुझे उससे बैेटर बनना है
- आदिनाथ सोसायटी के पारख धर्मसभा मण्डप में युवा सम्मेलन में मिला मार्गदर्शन
पूना । आपने कोई पढ़ाई, कॅरियर या व्यवसाय में कोई लक्ष्य (गोल) तय किया ओर उसे हासिल कर लिया तो समाज की नजर में आप सक्सेस (सफल) हो गए। जीवन में जो सफल होगा वह सुखी होगा इसकी कोई गारंटी नहीं है। सफलता का सर्टिफिकेट हम कोई ओर देता है जबकि सेटिशफेकेशन (संतुष्टि) हमे अपने अंदर से प्राप्त होता है। बिना संतुष्टि सफलता का आनंद नहीं उठा पाएंगे। हमारे आसपास कई ऐसे लोग मिल जाएंगे जो सर्वसुविधा सम्पन्न है फिर भी आनंद में नहीं है। हर सुविधा प्राप्त बड़ी-बड़ी सेलिब्रिटी आत्महत्या कर लेती है, कभी सोचा ऐसा क्यो होता है इसका कारण वह सफल तो हो गए पर स्वयं से संतुष्ट नहीं हो पाए। ये विचार पुण्यनगरी पूना के आदिनाथ सोसायटी जैन स्थानक भवन ट्रस्ट के तत्वावधान में पारख धर्मसभा मण्डप में श्रमणसंघीय वरिष्ठ सलाहकार सुमतिप्रकाश महारासा के सुशिष्य आगमज्ञाता प्रज्ञामहर्षि श्री डॉ. समकितमुनिजी म.सा. ने रविवार को ‘‘सक्सेस वर्सेज सेटिशफिकेशन’’ विषय पर युवा सम्मेलन में व्यक्त किए। उन्होंनंे राजस्थान के कोटा शहर में कई नौजवान छात्र-छात्राओं के आत्महत्या के मामले सामने आने की चर्चा करते हुए कहा कि कोटा के बड़े संस्थानों में जिनका चयन होता है वह सफल छात्र होता है इसके बावजूद आत्महत्या क्यों कर रहा है। दो शब्द है बेस्ट बनो यह अच्छा है लेकिन बैटर बनो ये नकारात्मक दिशा में ले जाकर तनाव का कारण बनता है। इसी बैटर बनने की लालसा में परीक्षा में 95 प्रतिशत अंक लाने वाला भी सामने वाले के 96 प्रतिशत अंक आने से सफल होने के बावजूद संतुष्ट नहीं हो पाता है। जहां कम्पीटिशन आ जाए वहां संतुष्टि कभी नहीं आ सकती। मुनिश्री ने कहा कि सफलता हमे पैसा, फैशन, प्रदर्शन, व्यसन देती है लेकिन संतुष्टि हमे परस्पर प्रेम, अपनापन व आत्मीयता देती है। जब हम स्वयं से खुश होंगे तभी दूसरों को खुश कर पाएंगे। तनाव का सबसे बड़ा कारण एक्सट्रॉ (अतिरिक्त) पाने की लालसा है। जीवन में सबको कुछ एक्सट्रॉ चाहिए। जिंदगी का मैच यदि विन करना है तो यह एक्सट्रॉ के लिए हो रही भागदौड़ रोकनी होगी। उन्होंने कहा कि एक्सट्रॉ हमेशा तनाव देता है ओर कई बार इस कारण जो मैच जीत चुके होते है वह भी हार जाते है। एक्सट्रॉ पाने के चक्कर में हर परिवार व सभी रिश्तो को भी इग्नोर कर देते है। एक्सट्रॉ बैंक बैलेंस के चक्कर में फैमिली का बैलेंस बिगड़ रहा है। एक बार यदि जिंदगी में रिश्तों का बैलेंस बिगड़ जाएगा तो वापस कायम करना बहुत मुश्किल हो जाता है। उन्होंने कहा कि सारे मोटिवेशनल स्पीकर सक्सेस होने की ट्रेनिंग देते है लेकिन संतुष्टि की ट्रेनिंग नहीं देंगे तो सफलता क्या काम आएगी।
आदमी के पास इतना टेंशन की हंसने के लिए भी वक्त नहीं
समकितमुनिजी ने कहा कि वर्तमान के हालात बहुत चिंतनीय है। हर खुशी लोगों के दामन में है फिर भी इतना टेंशन है कि हंसने के लिए भी वक्त नहीं है। यदि परिवार के साथ बैठ कुछ मिनट हंसी-खुशी से नहीं बिता पाए तो मिला हुआ सब किस काम का रह जाएगा। दिन-रात भाग रही दुनिया में लोगों के पास खुद के लिए भी वक्त नहीं है। आंखों में नींद भरी है पर सोने के लिए वक्त नहीं है, दिल जख्मों से भरा पर रोने के लिए भी वक्त नहीं। ऐसी जिंदगी का क्या होगा जिसमें हर पल मरने वालों को भी मरने के लिए वक्त नहीं है। हमारे पास परिवार के सदस्यों के लिए समय नहीं है ओर सफलता तो पास में है पर मन का सुकुन गायब हो चुका है। इससे चिडचिड़ापन शुरू हो जाता है। जो हमारे से उम्मीद रखते है उनकी तरफ ध्यान नहीं दे पाने से ही रिश्तों में गड़बड़ी शुरू होती है। घर में टेंशन शुरू हो गई तो बाहर कहीं भी रिलेक्स नहीं मिल पाएगा।
संतुष्टि के लिए तय करनी होगी हमारी सीमारेखा
प्रज्ञामहर्षि समकितमुनिजी ने कहा कि मैं किसी को पैसा नहीं कमाने, परीक्षा में सफल नहीं होने या जीवन में प्रगति नहीं करने के लिए नहीं कह रहा पर ये जरूर कहूंगा कि हमारी सफलता की कोई सीमारेखा तो होगी। हम बिना संतुष्टि का लक्ष्य तय किए कब तक दौड़ते रहेंगे। एक टारगेट प्राप्त होते ही दूसरे के लिए दौड़ शुरू कर देते है। सफलता के साथ संतुष्टि जोड़ने पर ही जीवन में खुशी मिल पाएगी। अभी हमारी कोई सीमा नहीं है कि संतुष्टि कब होगी। नॉन स्टॉप दौड़ने से कुछ नहीं मिलने वाला है। उन्होंने कहा कि संतुष्टि यानि थोड़ा सा आराम जिससे जिंदगी रिचार्ज हो जाती है। संतुष्टि के अभाव में प्रतिस्पर्धा में लगे रहते है ओर पाने के चक्कर में कितना खो रहे इसका अहसास ही नहीं होता। जब तक अपनी सीमा रेखा नहीं बनाएंगे तो दौड़ते हुए रूक भी नहीं पाएंगे। खुद को खुश वहीं रख सकता जो संतुष्ट है। जब तक संतुष्ट नहीं होगे चाहे कितना भी मिल जाए खुश नहीं हो पाएंगे। सफलता को संतुष्टि से जोड़ दिया तो जीवन की गाड़ी बहुत सुंदर चलेगी।
हम अपनी नजर में संतुष्ट हो गए तो सफल-श्री सोलंकी
युवा सम्मेलन के मुख्य अतिथि भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के वरिष्ठ अधिकारी श्री विशाल सोलंकी ने प्रेरणादायी उद्बोधन प्रदान करते हुए कहा कि हर इंसान के लिए सफलता व संतुष्टि के पैमाने एक समान नहीं हो सकते। एक इंसान जिस सफलता पर संतुष्ट हो सकता जरूरी नहीं दूसरा भी उससे संतुष्ट हो जाए। सबसे पहले हमे खुश इंसान बनने की सोचना है। मुझे लगता वास्तविक संतुष्टि ओर सफलता में कोई फर्क नहीं है। उन्होंने कहा कि हम अपने खुद के तरीके से जिंदगी जी पाए तो सफल है। हमे दुनिया की नजर से पहले अपनी नजर में सफल बनना है। आप अपने मापदण्डो पर खरे उतर रहे है तो खुश भी है ओर सफल भी है। पद, पैसा, प्रतिष्ठा यदि संतुष्टि नहीं है तो फिर सोचना पड़ेगा। हम अपनी सफलता की ऐसी परिभाषा खुद तय करनी पड़ेगी जो हमे संतुष्टि दे। उन्होंने युवाओं के लिए इस प्रेरणादायी आयोजन की सराहना करते हुए आयोजक श्री आदिनाथ स्थानकवासी जैन भवन ट्रस्ट की पूरी टीम को हार्दिक बधाई एवं साधुवाद दिया। सम्मेलन के शुरू में युवा सम्मेलन में पूना के विभिन्न क्षेत्रों से पहुंचे जैन समाज के सैकड़ो युवा मौजूद थे। सम्मेलन को सफल बनाने के लिए आदिनाथ स्थानकवासी जैन भवन ट्रस्ट पूना के अध्यक्ष सचिन रमेशचन्द्र टाटीया ने सभी का आभार जताया। मुख्य अतिथि परिचय आदिनाथ संघ के कार्यकारी अध्यक्ष अनिल भाउ नाहर ने दिया। सम्मेलन का संचालन विजय भाउ नवलखा ने किया।