
रतलाम, 4 अक्टूबर। माता-पिता को यदि अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देकर बेहतर इंसान बनाना है तो उसके लिए सात तरह के- गर्भ, गृह, सहन, शर्म, संघर्ष, स्कूल और धर्म संस्कार का होना उनमें भी आवश्यक है। यदि इन संस्कारों को माता-पिता ने अपना लिया तो उनका बच्चा जन्म से बेहतर इंसान बनने की और अग्रसर होगा। जब तक हम स्वयं अच्छे नहीं बनेंगे तब तक अपने बच्चों को कैसे अच्छा बना सकेंगे।
यह बात आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य मुनिराज ज्ञानबोधी विजयजी म.सा. ने सैलाना वालों की हवेली मोहन टाॅकीज में मानव संस्कारों का वर्णन करते हुए कही। मुनिराज ने कहा कि बच्चा जब गर्भ में होता है तब से ही उस पर माता-पिता के संस्कारों का असर होना शुरू हो जाता है। इसी लिए गर्भ के समय आपको गलत का त्याग कर धर्म को अपनाना होगा। धार्मिक किताबे पडे़ और अच्छी बातों का अनुसरण करें, जिससे बच्चे को लाभ होगा।
बच्चे के जन्म के बाद स्कूल से पहले घर की पाठशाला में बच्चों को संस्कार मिलते है, इसलिए आप घर में बच्चों के सामने अच्छा व्यवहार करें तो वह अच्छी बाते सिखेगा। बच्चों को उपदेश देने के बजाए उनके सामने उदाहरण पेश करें तो उसका ज्यादा प्रभाव उन पर पडे़गा। आज कल माता-पिता बच्चों की परवरिश इस तरह करते है कि उनकी सहन शक्ति खत्म हो रही हैं और वह थोड़े से में अवसाद में आ जाते है। बच्चों को सहनशील बनाएं, कमजोर नहीं।
मुनिराज ने कहा कि बच्चों के भीतर शर्म का संस्कार भी होना चाहिए। उन्हे सही-गलत की पहचान होना चाहिए कि हम जिस व्यक्ति के सामने जो कार्य कर रहे है, वह गलत तो नहीं है। उनमें माता-पिता और अपनों से बड़ों की शर्म होना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त उनके जीवन में संघर्ष का संस्कार होना भी अति आवश्यक है। जीवन में कभी कोई आपत्ति आए तो उससे भागना नहीं बल्कि उससे निपटना आना चाहिए। इससे ही व्यक्ति मजबूत बनता है।
मुनिराज ने कहा कि आज कल महंगे स्कूल बड़ गए और अच्छे कम हो गए। हमारे बच्चे स्कूल में क्या पढ़ रहे है, उनकी संगत कैसी है, क्या शिक्षा मिल रही है, यह माता-पिता को पता होना चाहिए। इसके साथ ही बच्चों में धर्म के संस्कार होना जरूरी हैं। उन्हे धर्म से जोड़े, धर्म सब कुछ सिखाता है। यदि यह संस्कार हममे आ गए तो जीवन धन्य हो जाएगा। श्री देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी के तत्वावधान में आयोजित प्रवचन में बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहे।