जोधपुर। जीवंत आत्मा को तो पानी नहीं पिलाता और मरने के बाद खीर की तैयारी करना दिवंगत आत्माओं की जख्मों पर नमक छिड़कने के समान है उक्त विचार राष्ट्र संत कमलमुनि कमलेश ने श्राद्ध पक्ष अपने कर्तव्य विषय पर आयोजित सेमिनार को महावीर भवन निमाज की हवेली मैं संबोधित करते कहा कि श्राद्ध पक्ष मनाने की दुहाई देने वालों के लिए वृद्ध आश्रम की संस्कृति उनके मुंह पर एक करारा तमाचा है । उन्होंने कहा कि यदि किसी की आंखों में दर्द के आंसू आ जाए तो हमारी जप तप साधना सब पानी में बह जाएगी उनको प्रसन्न रखना सबसे बड़ी पूजा और श्राद्ध है।
मुनि कमलेश ने कहा कि शरीर से आत्मा निकलने से पहले उनके द्वारा दिया गया दान साधना उनकी आत्मा के साथ जाता है उनके मरने के बाद उनके नाम पर किए गए से उनका कोई संबंध नहीं होता। जैन संत ने कहा कि पूरा परिवार बार भूकंप प्राकृतिक प्रकोप के भीड़ चल गया तो उनका श्राद्ध कौन बनायेगा क्या उनकी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी।
राष्ट्रसंत ने कहा कि आत्मा का पुनर्जन्म होने के बाद यहां के रिश्तो से कोई संबंध नहीं रहता है क्या आपको भी कोई श्राद्ध दे रहा होगा तो क्या आपका पेट भर रहा है एक दिन मनाने से पूर्ति हो जाएगी हमें प्रतिपल उनके गुणों का चिंतन करके आत्मसात करना उनका सपूत कहलाने का अधिकारी बनना है जिस दिन सारे विद्याश्रम खाली हो जाएंगे उस दिन हमारा सच्चा श्राद्ध मनाना सार्थक होगा । उज्जैन से पधारी साध्वी गोवत्स ने कहा कि अज्ञान दशा में किया गया पुण्य काम भी पाप में परिवर्तित हो जाता है अंधश्रद्धा जहर से भी खतरनाक है क्या सभी के पितरों को खीर ही पसंद थी छत पर रखने पर कौन खाता है चिंतन करें और आध्यात्मिकता को विवेक से जोड़ें घनश्याम मुनि कौशल मुनि ने विचार व्यक्त किए अक्षत मुनि ने मंगलाचरण किया साध्वी जी ने मुनि कमलेश का मंगल आशीर्वाद लिया।