प्रतापगढ़। राजस्थान के मुख्यमंत्री माननीय श्री अशोक गहलोत ने दिगम्बर जैन परम्परा का आचार्य श्री सुनीलसागर जी मुनिमहाराज को उनके 44वें जन्म दिवस पर हार्दिक शेभकामनायें और बधाई दी है।
माननीय अशोक गहलोत ने एक पत्र जारी कर लिखा है कि ‘7 अक्टूबर 2020 को आपके जन्मोत्सव पर मेरी और मेरे परिवार की ओर से आपको हार्दिक बधाई’ आगे उन्होंने लिखा- संतो और आचार्यों का जीवन सर्वजन के लिए समर्पित होता है। समाज आप जैसे संतों से जीवन में नैतिक मूल्यों के संरक्षण, सहिष्णुता, सद्भाव एवं मानव सेवा की प्रेरण ग्रहण करता है। आपने आचर्यश्री के 44वें जन्म दिवस पर स्वस्थ और सुदीर्घ जीवन की मंगलकामना की है।
मध्यप्रदेश के सागर जिलान्तर्गत तिगोड़ा (हीरापुर) नामक ग्राम में श्रेष्ठी भागचन्द्र जैन एवं मुन्निदेवी जैन के यहाँ अश्विन कृष्णा दशमी, वि. सं. 2034, तदनुसार 7 अक्टूबर 1977 को जन्में बालक संदीप का प्रारम्भिक शिक्षण किशुनगंज (दमोह) में तथा उच्च शिक्षण सागर में सम्पन्न हुआ। सत्संगति एवं आध्यात्मज्ञानवशात् शास्त्री एवं बी.कॉम.परीक्षाओं के मध्य आप विशिष्ट रूप से वैराग्योन्मुख हुए। परिणाम स्वरूप 20 अप्रैल 1997, महावीर जयंती के पावन दिन बरुआ सागर (झाँसी) में आचार्यश्री आदिसागर अंकलीकर के तृतीय पट्टाधीश आचार्यश्री सन्मति सागरजी द्वारा आपको जैनेश्वरी दिगम्बर दीक्षा प्राप्त हुई, और आप मुनि सुनीलसागर नाम से प्रख्यात हुए।
आपका आपके गुणों को देखकर माध शुक्ला सप्तमी दिनांक 25 जनवरी 2007 को औरंगाबाद में अपने गुरु के करकमलों से आचार्य पदारोहण हुआ। आपको मृदुभाषी, बहुभाषाविद्, उद्भट, विद्वान्, उत्कृष्ट साधक, मार्मिक हत्यकार और समर्पणता देखकर आपके तपस्वी सम्राट आ.सन्मतिसागरजी ने अपनी समाधि से पर्व 23 दिसम्बर 2010 को अपना पट्टाचार्य पद दिया और 26 दिसम्बर 2010 को कुंजवन में इसकी घोषणा हुई, उसी दिन मुंबई महानगर में गुलालबाड़ी में विद्वत्-श्रेष्ठियों की भरी सभी में चतुर्थ पट्टाधीश पद आपको प्रदान किया गया।
चतुर्थ पट्टाधीश आचार्य श्री सुनीलसागर जी प्राकृत, संस्कृत, अंगेजी सहित 8-9 भाषाओं के केवल जानकार ही नहीं । प्राकृत और संस्कृत में तो आप धारा प्रवाह प्रवचन देते हैं आप12 ग्रन्थ प्राकृत में के हैं जो भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हैं। इनके साथ आप अभी तक 48 ग्रनथों का प्रणयन कर चुके हैं। आपको अनेक उपाधियां प्राप्त हैंअपने विशाल संघ के साथ आचार्यश्री अभी प्रतापगढ़ राजस्थान के शांतिनाथ में चातुर्मास्थ हैं।