जैन दिवाकर भवन पर चल रही तप आराधना

जावरा (अभय सुराणा) । आप अपने आप में एक शुद्घ आत्मा है और यह मन, वचन और काया जीवन को चलाने वाली गाड़ियों की तरह है। आप इन तीनों का दुरुपयोग नहीं करें। यदि इनका विवेकपूर्ण उपयोग किया तो जीवन तनाव अवसाद से मुक्त रहेगा। कहीं कोई भी आपका बाल बांका नहीं कर सकता।यह विचार जैन दिवाकर भवन पर प्रवचन देते हुए ध्यान योगी आगम ज्ञाता विकसित मुनि जी म.सा.ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि यदि अतीत में मन, वचन और काया का दुरुपयोग हो गया है या हो जाता है तो प्रतिक्रमण कर पापों का प्रायश्चित करो। प्रभु से प्रार्थना करें कि वे मुझे क्षमा करें। मैं दुबारा ऐसा नहीं करूंगा। मात्र सामायिक करने, माला फेरने या बाहरी क्रियाएं करने से भगवान प्रसन्न नहीं होते हैं। बाहरी क्रियाएं तो हमने बहुत कर ली, रोज कर ही रहे हैं। फिर भी मन बेचैन क्यों है। यदि एसी में बैठकर भी पसीना टपक रहा है, तो कारण जरूर कमरे में कहीं कहीं कोई गर्म चीज है। ठीक इसी तरह धर्म करते हुए भी अंदर कोई कोई आग जल रही है। इसी कारण उसका अपेक्षित परिणाम नहीं मिल रहा है। तनावमुक्त रहने के लिए मन को पवित्र एवं निर्मल रखे।आपने जीवन के सूत्र बताते हुआ समझाया की तनाव काम करने से नहीं, अहंकार करने से होता है। मैंने यह किया, वो किया, फिर भी मुझे यह नहीं मिला। आप कभी खुद को कर्ता नहीं माने।स्वार्थ से ऊपर उठकर जीएं। याद रखे, निस्वार्थ भाव से दूसरों को देने से ही सुख मिलता है। आप देते रहिये, आपको अपने आप मिलेगा।खाने-पीने, चलने, उठने, देखने, बैठने यानी सब काम में विवेक रखे। यही शरीर का सदुपयोग है। शुद्घ भाव से साधना करने से जीवन मंगलमय होता है।बोलें तो बांसुरी की तरह बोलिये विकसित मुनि ने वाणी के विवेक को बांसुरी के उदाहरण से समझाया। बांसुरी बिना बुलाए बोलती नहीं। जब भी बोलती है, मीठा बोलती है। यदि किसी छेद में कोई अवरोध जाए तब नहीं बोलती है। यानी गांठ नहीं रखती। आप भी बिना कहे राय नहीं दे, बोले तो मीठा ही बोले और मन में गांठ रखकर नहीं बोले! तपरत्न श्रीमान प्रकाशचंद जी पीतलिया ने गुरुदेव के पावन मुखारविंद से 39 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। धर्मसभा का संचालन सहमंत्री आकाश जैन ने किया आभार प्रदर्शन उपाध्यक्ष विनोद ओस्तवाल ने माना।